Bihar Education Department और उर्दू
Bihar Education Department और उर्दू
PATNA- बिहार में उर्दू की सारी समस्याओं का जिम्मेदार शिक्षा विभाग है। Bihar Education Department की तरफ से उर्दू के मामले में हमेशा तंग नज़री का मोजाहरा किया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब पहली बार सत्ता में आए थे तो उन्होंने एलान किया था कि सभी स्कूलों में एक-एक उर्दू के टीचरों को लाज़मी तौर पर नियुक्त किया जाएगा। उस वक्त के शिक्षा मंत्री वृषण पटेल ने उर्दू शायरी कर उर्दू वालों का खूब दिल जीता था। कुछ स्कूलों में उर्दू के शिक्षकों को नियुक्त भी किया गया। नीतीश कुमार उर्दू का कशीदा पढ़ते रहे और उर्दू आबादी के दरमियान अपनी एक अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुटे रहे लेकिन डेढ़ दशक गुजरने के बाद भी क्या हुआ, उर्दू आज भी अपनी बेबसी पर आंसू बहा रही है।
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उर्दू कारवां
पटना में उर्दू कारवां का एक डेलिगेशन उर्दू के मामले पर शिक्षा मंत्री से मुलाकात किया। शिक्षा मंत्री ने उनकी बातों को सुनकर उर्दू के साथ इंसाफ करने का वादा किया है। उर्दू कारवां ने मंत्री को जो ज्ञापन सौंपा है उसमें उर्दू टीईटी उम्मीदवारों के साथ इंसाफ करने की मांग के अलावा स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की बहाली, स्कूलों के सिलेबस में उर्दू को लाज़मी मज़मुन की हैसियत से बरकरार रखने समेत उर्दू अकादमी, उर्दू परामर्शदाता समिति का गठन करना शामिल है। यकीनन उर्दू कारवां की मांग बिल्कुल सही है लेकिन शिक्षा विभाग डेढ़ दशक से उर्दू के मामले पर क्यूं सोया हुआ है। ये सवाल सबसे अहम है।
शिक्षा विभाग
Bihar Education Department की तरफ से उर्दू के सिलसिले में कई फैसलों ने राज्य में सुर्खियां बटोरी जिसमें स्कूलों के सिलेबस से उर्दू की लाज़मीयत को हटाया जाना, उर्दू स्कूलों को हिंदी स्कूलों में बदले जाने समेत उर्दू टीईटी उम्मीदवारों के साथ नाइंसाफी जैसे मामले शामील हैं। बार बार सरकार से मांग की गई और बार बार सरकार ने भरोसा दिलाया कि उर्दू के मसले को हल किया जाएगा। अब एक बार फिर से शिक्षा मंत्री की तरफ से भरोसा दिलाए जाने पर उर्दू आबादी में कोई खास हलचल नही है। उलटा उर्दू के लोग कह रहे हैं कि उर्दू अकादमी, उर्दू परामर्शदाता समिति और उर्दू शिक्षकों की बहाली में भेदभाव का नज़रिया सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करता रहा है।
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उर्दू पर सियासत
ऐसा नही है कि बिहार में अकलियतों के बीच उर्दू का ही एक मसला है। आर्थिक एतबार से हाशिए पर खड़े अल्पसंख्यक समाज को कई तरह की चुनौतियों का सामना है। रोज़गार, सेहत, तालीम, बुनियादी सुविधाओं की कमी, सियासी हिस्सेदारी जैसे कई सवाल सामने आते रहे हैं लेकिन उर्दू पर सबसे ज्यादा सियासत होती है और सियासी पार्टियों ने इस जबान के विकास का दावा कर उर्दू वालों का वोट लिया है। उर्दू के मसले को हल करने और उर्दू को मीठी ज़बान बताने वाली सरकार ने डेढ़ दशक में उर्दू को क्या दिया। जानकारों के मोताबिक जब इस सिलसिले में गौर किया जाता है तो नतीजा सिफर दिखाई देता है।
मुस्लिम संगठन
ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के उपाध्यक्ष मौलाना अनीसुर्रहमान कासमी का कहना है कि सरकार ने उर्दू के साथ इंसाफ नहीं किया है। अच्छी बात है कि मौजूदा शिक्षा मंत्री उर्दू के मामले पर कुछ करना चाहते हैं और उन्होंने उर्दू के साथ इंसाफ करने का भरोसा दिलाया है लेकिन इस बात पर यकीन तभी हो सकता है जब सही मायनों में उनकी तरफ से उर्दू के मसले को हल करने की कोई पहल हो। शिक्षा विभाग कहता कुछ है और करता कुछ है। अगर Bihar Education Department वाकई संजीदा होता तो स्कूलों में एक-एक उर्दू शिक्षकों को नियुक्त करने का मुख्यमंत्री का वादा कब का पूरा हो चुका होता लेकिन क्या हुआ अभी तक ना ही स्कूलों में उर्दू के शिक्षकों को नियुक्त किया गया और ना ही उर्दू के सरकारी संस्थाओं के मसले को हल करने की कोई कोशिश शुरु की गई है। ऐसे में सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा होना लाज़मी है। हमें उम्मीद है कि वो इस मामले में कोई सकारात्मक कार्वाई करेगें।
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