बिहार के Minority Schools
बिहार के Minority Schools
PATNA- बिहार में 72 Minority Schools है। अल्पसंख्यक स्कूलों को सरकार से अनुदान मिलता है। इसलिए इन स्कूलों को Government Aided Schools कहते हैं। पूरे बिहार के अल्पसंख्यक स्कूलों में करीब 900 शिक्षक नियुक्त है। जिन पर एक साल में सरकार का करीब 100 करोड़ रुपया खर्च होता है। कहते हैं Minority Schools का रिजल्ट सबसे अच्छा होता है। अल्पसंख्यक स्कूलों में 50 हज़ार से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं। आज से स्कूल खुल गया है तो अल्पसंख्यक स्कूलों में भी रौनक आ गई है। दो सालों से कशमकश की हालत में चल रहे स्कूलों ने अब राहत की सांस ली है।
स्कूलों को विशेष अधिकार
अल्पसंख्यक स्कूलों को विशेष अधिकार प्राप्त था। संविधान की धारा 29 और 30 के तहत शिक्षकों को नियुक्त करने और स्कूल के रखरखाव की पूरी जवाबदेही स्कूलों के पास था। कहने को वो अधिकार अभी भी स्कूलों को हासिल है लेकिन उसमें काफी बदलाव आ चुका है। राज्य सरकार के स्कूलों में जो नियम है अब उसी नियम और कानून पर Minority Schools को भी अमल करना होता है। अब न ही वो अपनी मर्जी से शिक्षकों को नियुक्त कर सकते है और न ही अपनी मर्जी से कोई नियम बना सकते हैं।
Also Read – Bihar School Reopen
मुस्लिम अल्पसंख्यक स्कूल
बिहार के 72 Minority Schools में 38 स्कूल मुस्लिम अल्पसंख्यक समाज का है। करीब आठ स्कूल आर्या समाज, बंगाली और पंजाबियों का है। बाकी के स्कूल क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल हैं। बुद्धिजीवियों का कहना है कि सरकार इन स्कूलों को पैसा देती है तो उसका फायदा समाज के सभी वर्ग को मिलना चाहिए जबकि अल्पसंख्यक स्कूलों में कई ऐसे स्कूल हैं जहां आर्थिक एतबार से कमजोर बच्चों को दाखिला नहीं के बराबर होता है।
Also Read – Indian Independence Day
अल्पसंख्यक स्कूल के छात्र
38 स्कूलों का संचालन मुस्लिम समाज की तरफ से किया जाता है। इन स्कूलों में बच्चों से फीस के नाम पर चंद रुपए लिये जाते हैं जबकि पढ़ाई काफी बेहतर होती है। पटना के मुस्लिम स्कूल, जाकिर हुसैन स्कूल, अयूब गर्लस स्कूल, सर सैयद स्कूल, मोहम्मदन स्कूल जैसे एदारों में ऐसे छात्रों का दाखिला आसानी से हो जाता है जो समाज के आखिरी पायदान पर खड़े हैं। स्कूलों के शिक्षकों को सरकार की तरफ से पैसा मिलता है। Minority Schools में पढ़ने वाले छात्रों को पैसा की मुश्किल तालीम हासिल करने की राह में रुकावट नहीं बनती है। समय बदलने के साथ-साथ सरकार की तरफ से इन स्कूलों में काफी सुविधाएं मुहैया कराई गई है। उन सुविधाओं का फायदा छात्रों को मिलता है। उसी तरह आर्य समाज और पंजाबियों के स्कूलों में गरीब छात्रों की मदद की जाती है। ज़ाहिर है आर्थिक एतबार से कमज़ोर छात्रों को शिक्षा हासिल करने की राह में कोई मुश्किल नहीं होती है।
Also Read – Economically Backward Class
क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल
क्रिश्चियन मिशनरी स्कूलों की हालत बिल्कुल अलग है। क्रिश्चियन मिशनरी Minority Schools में आम तौर पर समाज के उच्च वर्ग के छात्र तालीम हासिल करते हैं। कहने के लिए क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल भी बच्चों से पैसा नहीं लेता है लेकिन Donation के नाम पर बच्चों से मोटी रकम उसूल करना इन स्कूलों में आम बात है। ये सही है कि सबसे अच्छा रिजल्ट क्रिश्चियन मिशनरी Minority Schools का है। अंग्रेजी मीडियम के इन स्कूलों में छात्रों को काफी सुविधाएं मिलती है। स्कूल प्रशासन बच्चों से ड्रेस, किताब, कॉपी के नाम पर भी अलग से पैसा लेता है। जानकारों के मुताबिक यही कारण है कि क्रिश्चियन मिशनरी Minority Schools में आर्थिक एतबार से कमजोर छात्रों की संख्या नाम के बराबर होती है। ऐसे में ये सवाल अपनी जगह पर कायम है कि जब इन स्कूलों के शिक्षकों को सरकार वेतन देती है फिर गरीब छात्रों को यहां दाखिला मिलने में मुश्किल क्यों आती है।
स्कूलों को मिले सुविधा
कोविड गाइडलाइन पर अमल करते हुए राज्य के 72 Minority Schools खुल गये हैं। एक दिन में 50 फीसदी बच्चों को स्कूल आने की इजाजत है। स्कूल के संचालक बच्चों की सुरक्षा के मामले पर पूरी तरह से अलर्ट है। अल्पसंख्यक स्कूलों का कहना है कि उन्हें पहले से मिल रही सुविधाएं सरकार की तरफ से दी जानी चाहिए जिसमें शिक्षकों की नियुक्ति के साथ-साथ स्कूलों का अपने हिसाब से रखरखाव शामिल है। संविधान की धारा 29 और 30 में दिये गये अख्तियार के अनुसार सरकार को अल्पसंख्यक स्कूलों को सुविधा देनी चाहिए।
ये भी पढ़ें-