Urdu Academy

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सुशासन की सरकार में खस्ताहाल हो गई Urdu Academy

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बिहार उर्दू अकादमी।
नीतीश कुमार जब पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे तो उर्दू अकादमी की मीटिंग सेक्रेटेरिएट में उनके दफ्तर में हुई थी। तब मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि हर साल उनके ही दफ्तर में उर्दू अकादमी की मीटिंग होगी। मुख्यमंत्री के इस उदार रवैये पर उर्दू वालों ने काफी खुशी का इजहार किया था।

बिहार में कहने को तो उर्दू राज्य की (Second Official Language) दूसरी सरकारी भाषा है लेकिन उर्दू के सिलसिले में सरकार कितना गंभीर है उसकी एक मिसाल राज्य की उर्दू अकादमी है। पिछले साढ़े तीन सालों से उर्दू अकादमी का गठन नहीं किया गया है। ये हालत तब है जब उर्दू अकादमी के अध्यक्ष खुद राज्य के मुख्यमंत्री हैं। सरकार कहती है कि Urdu Academy का जल्द गठन किया जाएगा। दिलचस्प है कि पिछले तीन सालों से सरकार में शामिल मंत्री और जेडीयू के नेता उर्दू आबादी से सिर्फ वादा ही करते आ रहे हैं। लेकिन अब तक उर्दू अकादमी के लिए सरकार को एक अदद सेक्रेटरी नहीं मिल सका है।

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उर्दू अकादमी का काम

उर्दू अकादमी राज्य की दूसरी भाषा के विकास के लिए काम करती है। उर्दू से जुड़े लोगों को अवार्ड देती है, उनकी किताबों की छपाई के लिए मदद करती है। उर्दू की तरक्की के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करती है। इसके अलावा भी उर्दू अकादमी उर्दू का काम करती है। लेकिन पिछले तीन सालों से उर्दू अकादमी का काम पूरी तरह से बंद पड़ा है। आखिरी सेक्रेटरी मुश्ताक अहमद नूरी थे जिनके समय में उर्दू के विकास के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था। उनके बाद से ही Urdu Academy का काम बंद हो गया। सरकार कहती रही कि जल्द उर्दू अकादमी का गठन किया जाएगा लेकिन सियासत कब अपने वादों पर खरा उतरती है।

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सरकार को नहीं मिला सेक्रेटरी के लिए कोई आदमी

उर्दू आबादी उर्दू की सुरते हाल पर बेहद चिंतित है। राज्य में सरकार की उर्दू संस्थाएं बरबादी के कागार पर खड़ी है। सरकार सुशासन का दावा करती है लेकिन उर्दू आबादी के लिए सुशासन का दरवाजा नहीं खुल पा रहा है। उर्दू के लोग ये समझने से मजबूर हैं कि एक छोटे से संस्था को गठन नहीं करने से सरकार को क्या फायदा हो रहा है। आखिर साढ़े तीन वर्षों से उर्दू अकादमी को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है। बिहार जैसे राज्य में जिसके बारे में दूसरे राज्यों के लोगों का ये ख्याल है कि ये उर्दू की नई बस्ती है तो क्या सरकार को Urdu Academy के लिए एक भी सेक्रेटरी के ओहदे का लायक आदमी नहीं मिला। ये सवाल उर्दू आबादी को परेशान करने लगी है।

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मुख्यमंत्री के साथ उनके चैंबर में हुई थी मीटिंग

नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) जब पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे तो उर्दू अकादमी की मीटिंग सेक्रेटेरिएट में उनके दफ्तर में हुई थी। तब मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि हर साल उनके ही दफ्तर में Urdu Academy की मीटिंग होगी। मुख्यमंत्री के इस उदार रवैये पर उर्दू वालों ने काफी खुशी का इजहार किया था। उनको महसूस हुआ की अब राज्य में उर्दू की स्थिति में सुधार हो जाएगा। लेकिन उर्दू वालों का ये सपना कभी पूरा नहीं हुआ। वो मीटिंग भी आखिरी मीटिंग साबित हुई उसके बाद उर्दू अकादमी से जुड़े उर्दू के विद्वानों को मुख्यमंत्री के चैंबर में मीटिंग के लिए कभी नहीं बुलाया गया। अकादमी की जिम्मेदारी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री के हवाले कर दी गई। अब मुख्यमंत्री की जगह अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री को उर्दू अकादमी की मीटिंग करनी थी लेकिन वो सिलसिला भी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सका। उर्दू वाले अपने-अपने मसले को मुख्यमंत्री के मुलाकात में बता सकते थे वो मौका तो पहले ही खत्म हो गया था फिर उन्हें अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री के साथ गुफ्तगू का मौका मिला लेकिन वहां भी उन्हें मायूसी हाथ लगी। देखते ही देखते उर्दू अकादमी का वजूद ही एक तरह से दाव पर लग गया।

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मुख्यमंत्री पर उर्दू वालों का भरोसा

बिहार की उर्दू आबादी को उर्दू अकादमी से एक जज्बाती रिश्ता रहा है। वो चाहते हैं कि Urdu Academy का गठन किया जाए ताकि अकादमी उर्दू के सिलसिले में कुछ काम कर सके। अब तीन साल से ज्यादा अरसे से अकादमी का गठन नहीं किया गया है तो उन्हें इस बात की फिक्र सता रही है कि क्या उर्दू के साथ वाकई इंसाफ नहीं होगा। उन्हें मुख्यमंत्री के वादों पर भी अब उतना भरोसा नहीं रहा। पहले वह कहा करते थे कि नीतीश कुमार गंभीर व्यक्ति हैं और वो जो कहते है पूरा करते है लेकिन अकादमी के मामले में ऐसा नहीं हुआ है।

एमआईएम ने उठाया सवाल

एमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान (State President AIMIM Akhtarul Iman) का कहना है कि राज्य सरकार उर्दू के साथ सौतेला सलूक कर रही है। सरकार की जितनी भी उर्दू की संस्थाएं है वो खस्ताहाली के कागार पर खड़ी है। एक तो उनका गठन नहीं हो रहा है ऊपर से उर्दू के साथ सरकार का रवैया अफसोसनाक है। अख्तरुल ईमान का कहना है कि सुशासन का दावा करने वाली सरकार उर्दू के मामले में पूरी तरह से लापरवाही का प्रदर्शन कर रही है।

अल्पसंख्यक मंत्री का वादा

अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान (Minority Welfare Minister Zama Khan) का कहना है कि उर्दू अकादमी का जल्द गठन किया जाएगा। जमा खान की बात मान लें तो इससे उर्दू के लोगों को थोड़ी देर के लिए राहत हो सकती है लेकिन इस तरह का भरोसा उन्हें पिछले तीन सालों से दिलाया जा रहा है। जेडीयू के अल्पसंख्यक नेताओं ने भी बार-बार कहा है कि Urdu Academy का जल्द गठन होगा। वो कहते रहे हैं कि सरकार उर्दू को लेकर काफी चिंतित है लेकिन उनका दिलाया हुआ भरोसा पानी का बुलबुला साबित होता रहा है।

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