Madarsa Islamia Shamsul Huda
Madarsa Islamia Shamsul Huda का बंद होना समाज और सरकार की लापरवाही
किसी समाज के बौद्धिक विकास का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि उस समाज के शैक्षणिक संस्थान मौजूदा समय की जरूरतों को पूरा कर रहा है या नहीं। अगर उस समाज का ऐतिहासिक संस्थान बंद होने के कागार पर खड़ा हो और समाज को कोई फर्क नहीं पड़े तो अंदाजा लगाइए की वो तबका कितना पिछड़ा हुआ है। |
किसी राज्य की खुशहाली का पैमाना इस बात से भी मापा जाता है कि वहां के शैक्षणिक संस्थानों की क्या सुरते हाल है। उसी तरह किसी समाज की बौद्धिक विकास का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि उस समाज के शैक्षणिक संस्थान मौजूदा समय की जरूरतों को पूरा कर रहा है या नहीं। बात बिहार की और बिहार के अल्पसंख्यक समाज की। बिहार में अल्पसंख्यकों की आबादी 17 फीसदी है। ये बताने की जरूरत नहीं है कि शैक्षणिक दृष्टिकोण से अल्पसंख्यकों की क्या स्थिति है। बावजूद इसके शैक्षणिक संस्थानों के मामले में अल्पसंख्यक समाज की उदासीनता अफसोसनाक है वहीं Madarsa Islamia Shamsul Huda का मसला इस समाज के पढ़े-लिखे लोगों को भी कटघरे में खड़ा करता है।
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बिहार का अकेला सरकारी मदरसा
पूरे बिहार में सरकार का इकलौता राजकीय मदरसा पटना में है। नाम है मदरसा इस्लामिया शमसुल होदा, जो अशोक राज पथ पर बिहार के मशहूर साइंस कालेज के सामने स्थित है। जस्टिस सैयद नुरुलहोदा ने अपनी कीमती जमीन Madarsa Islamia Shamsul Huda के नाम करते हुए ये सोचा भी नहीं होगा की एक दिन मदरसा बंद होने के कागार पर खड़ा होगा और इस एदारे के सिलसिले में समाज का नजरिया हद दर्जा अफसोसनाक होगा। लेकिन ये सच हो गया। वो भी विकास पुरुष के नाम से मशहूर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सत्ता में। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काफी गंभीर व्यक्ति हैं। हर काम काफी सोच समझ कर करते हैं। मुख्यमंत्री भी शिक्षा के क्षेत्र में काम करने का बार-बार एलान करते रहे हैं लेकिन आखिर ऐसा क्यों हुआ कि पटना में स्थित सरकार का इकलौता मदरसा बंद होने के कागार पर पहुंच गया और सरकार कुछ नहीं कर सकी। ये बात लोगों को हैरान कर रहा है।
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विधानसभा में पूछा गया था सवाल
विधानसभा में पुछे गये एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा था कि शमसुल होदा मदरसा में 35 पोस्ट स्वीकृत है। गौर करने वाली बात ये है कि Madarsa Islamia Shamsul Huda के ज्यादातर ओहदे वर्षों से खाली है। दो सेक्शन में बंटे इस मदरसे के सीनियर सेक्शन में भी शिक्षक नाम के रह गए हैं और पहली क्लास से मैट्रीक तक की तालीम देने वाला मदरसे का जूनियर सेक्शन पूरी तरह से बंद हो गया है। जाहिर है मदरसे का जूनियर सेक्शन एक दिन में तो बंद हुआ नहीं होगा। काफी वक्त लगा होगा लेकिन वहां शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई। ऐसा नहीं है कि इस मदरसे को बंद हो जाने से अल्पसंख्यक समाज पर कोई फर्क पड़ेगा। अल्पसंख्यकों का एक बड़ा वर्ग ऐसे मसले पर अब अपना मुंह तक नहीं खोलता है। अल्पसंख्यकों की संगठनों की नजर में सौ साल पुरानी शैक्षणिक संस्थान की बहुत ज्यादा कद्र नहीं है। अगर होती तो सरकार मदरसे के बंद होने से पहले शिक्षकों की नियुक्ति कर दी होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
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शमसुल होदा मदरसे को विश्वविद्यालय बनाने की मांग
जानकारों के मुताबिक Madarsa Islamia Shamsul Huda के पास इतनी भूमि है कि वो एक मुकम्मल विश्वविद्यालय बन सकता है। आजादी से पहले कायम किए गये इस एदारे के नाम पर ही कभी मौलाना मजहरुल हक यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई थी। यूनिवर्सिटी तो बन गई लेकिन शमसुल होदा को यूनिवर्सिटी से कोई खास फायदा नहीं मिला। जानकारों का कहना है कि जब राज्य सरकार राज्य के शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नई यूनिवर्सिटियां कायम कर रही है तो ऐसा क्यों नहीं हो सकता है कि शमसुल होदा मदरसे को भी एक यूनिवर्सिटी का शक्ल दिया जाए। उनके मुताबिक हमेशा ऐसा देखा गया है कि सरकार चाहती है तो बड़े से बड़ा काम जमीन पर उतार देती है। शिक्षा के लिए सरकार से किसी चीज की मांग करना गलत नहीं है। शिक्षा को ही तरक्की का अकेला रास्ता माना जाता है। सरकार खुद विकास करने का दावा करती रही है। ऐसे में बंद हो रहे शमसुल होदा मदरसे में शिक्षकों की नियुक्ति तो की ही जाए साथ ही सरकार इस बात पर भी गौर करें की अशोक राज पथ जैसे शिक्षा के हब वाले इलाके में शमसुल होदा मदरसे को विश्वविद्यालय का रुप दिया गया तो इससे छात्रों को कितना फायदा होगा। खास बात ये है कि शमसुल होदा मदरसे में करोड़ों की जमीन का मुनासिब इस्तेमाल नहीं हो रहा है। मदरसे को विश्वविद्यालय बनाया जाए तो यहां पढ़ने वाले छात्र अपना और राज्य का विकास करेंगे इससे इनकार नहीं है। जेडीयू के तमाम अल्पसंख्यक नेता मुख्यमंत्री को अकलियतों का हितैषी बताते हैं। ऐसे में अल्पसंख्यक समाज का पढ़ा-लिखा वर्ग शमसुल होदा मदरसे को विश्वविद्यालय बनाने के लिए मुख्यमंत्री से अपील करता है तो ये गैर-मुनासिब नहीं है। समाज के जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री इस पर गंभीर हो तो आने वाली नस्लें उन्हें याद करेगी।