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Aligarh Muslim University Kishanganj

Aligarh Muslim University Kishanganj

 

Aligarh Muslim University Kishanganj

 

 

पूरे देश में पांच जगहों पर बनना था Aligarh Muslim University का कैंपस

 

PATNA- केंद्र में यूपीए की सरकार थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे और जस्टिस राजेंद्र सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट आ गई थी। देश के मुसलमानों की सही सूरते हाल का खुलासा सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में हो चुका था। मुसलमानों की बदहाली को दूर करने के लिए सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा आयोग ने कई तरह का सुझाव दिया था। जिसमें से एक मुसलमानों की शैक्षणिक बदहाली को हल करने का सुझाव था। उसी समय भारत सरकार के एचआरडी विभाग ने अली अशरफ फातमी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। नाम था फातमी कमेटी। फातमी कमेटी ने मुसलमानों के शैक्षणिक उत्थान के लिए कई तरह का मशवरा दिया। जिसमें से एक देश के पांच जगहों पर Aligarh Muslim University के ब्रांच को खोलने की सिफारिश की गई। Aligarh Muslim University ने भोपाल, कटिहार, मुर्शिदाबाद, मल्लापुरम और पुणे में 5 नए कैंपस खोलने की मंजूरी दे दी। Aligarh Muslim University प्रशासन ने इस सिलसिले में बिहार के मुख्यमंत्री, केरल, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के चीफ सेक्रेटरी को 250-300 एकड़ ज़मीन मुहैया कराने के लिए खत लिखा। युनिवर्सिटी ने यूजीसी को 5 नए कैंपस के लिए 2000 करोड़ रुपये लागत का रिपोर्ट भेजा था। उस पांच नए ब्रांच में एएमयू का एक ब्रांच बिहार के मुकद्दर में आया।

 

Aligarh Muslim University

 

 

कटिहार के बजाए किशनगंज में खुला एएमयू का ब्रांच

Aligarh Muslim University के उस वक्त के वीसी ने बिहार सरकार को खत लिख कर कटिहार में अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी की ब्रांच को खोलने की इजाजत मांगी थी। मुख्यंत्री नीतीश कुमार ने कटिहार के बजाय किशनगंज में विश्वविद्यालय कायम करने का मशवरा दिया। Aligarh Muslim University प्रशासन उस के लिए तैयार हो गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किशनगंज के कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र के चकला गांव में यूनिवर्सिटी के लिए ज़मीन देने का ऐलान किया। वो ज़मीन शुरु में तीन भागों में बंटी हुई थी। किशनगंज के स्थानीय सियासी रहनुमाओं ने इस पर एतराज़ किया और सरकार के खिलाफ जोर दार प्रदर्शन किया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मान गए और एक जगह विश्वविद्यालय के लिए उसी स्थान पर ज़मीन दे दिया गया। राज्य सरकार ने फ्री ऑफ कॉस्ट एएमयू किशनगंज ब्रांच के लिए 224.02 acres ज़मीन फराहाम कराया।

 

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किशनगंज में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिर्सिटी का कैंपस

Aligarh Muslim University किशनगंज ब्रांच के लिए ज़मीन मिल गई अब कैंपस बनाने का काम किया जाना था। लेकिन यूपीए सरकार की टालमटोल और देरी के कारण काम नहीं हो सका तब तक लोकसभा के चुनाव का वक्त आ गया। सोनिया गांधी उस वक्त के एमपी मौलाना असरारुल हक कासमी के प्रचार के लिए किशनगंज आई थी। उन्होंने Aligarh Muslim University किशनगंज ब्रांच के कैंपस बनाने के लिए एक बड़ी रकम जारी करने का ऐलान किया। चुनाव के बाद केंद्र की सत्ता बदल गई और Aligarh Muslim University की ब्रांच का मामला पूरी तरह से दब गया।

 

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नीतीश कुमार ने एएमयू में पढ़ाई शुरु करने लिए दिया भवन

बिहार सरकार ने एएमयू किशनगंज को वक्ती तौर पर चलाने के लिए 6 जुलाई 2013 को हलीम चौक, पुराना खगड़ा, किशनगंज में दो अल्पसंख्यक छात्रवास (एक लड़के का और दूसरा लड़कियों का) विश्वविद्यालय के हवाले कर किया। Rent-free Buildings अल्पसंख्यक छात्रवास में Aligarh Muslim University किशनगंज की शुरुआत हो गई। कई साल गुजरने के बाद भी Aligarh Muslim University किशनगंज का ब्रांच उसी अल्पसंख्यक छात्रवास में चल रहा है। यूनिवर्सिटी ने B.Ed का अपना पहला बैच यहीं से शुरु किया। 2014 में MBA की पढ़ाई शुरु हुई। मज़े की बात ये है कि देश की इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी का ब्रांच आज भी राज्य सरकार की तरफ से दी गई अल्पसंख्यक छात्रवास में ही चल रही है।

 

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चुनाव के समय याद आता है किशनगंज का एएमयू ब्रांच

किशनगंज में एएमयू के ब्रांच खोलने की बात पर पूरे सीमांचल में खुशी मनाई गई थी। लोगों को उम्मीद थी कि एएमयू का कैंपस उन के इलाके में बन जाने से न सिर्फ इलाके का शैक्षणिक पिछड़ेपन खत्म होगा बल्कि रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे लेकिन लोगों की उम्मीदें अब तक पूरी नहीं हो सकी है। शुरुआत में जिस तरह से किशनगंज के स्थानीय नेताओं ने विश्वविद्यालय के लिए आंदोलन चलाया था अब उस आंदोलन की लव पूरी तरह से बुझ चुकी है। जब भी चुनाव का समय आता है स्थानीय सियासी रहनुमा Aligarh Muslim University की ब्रांच का मुद्दा उठा कर लोगों को खुश करने की कोशिश करते हैं ताकि यूनिवर्सिटी के नाम पर उनको वोट मिल सके। स्थानीय नेताओं की लापरवाही ने सरकार को भी लापरवाह बना दिया और जो सरकार सुशासन और सब की तरक्की का दावा करती है वो सरकार भी विश्वविद्यालय के मामले पर खामोश हो गई।

 

अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वाले भी हैं खामोश

बिहार सरकार Aligarh Muslim University किशनगंज ब्रांच के मामले पर खामोश है। मज़े की बात ये है कि अल्पसंख्यक इलाकों की राजनीति करने वाली पार्टियों ने भी इस मुद्दे को उठाना ज़रुरी नहीं समझा है। ये कहना गैर मुनासिब नहीं है कि विपक्ष के किसी एजेंडे में Aligarh Muslim University किशनगंज ब्रांच का मामला नहीं रहा है। जानकार कहते हैं कि सियासी पार्टियों के लिए सिर्फ वोट का मामला अहम होता है। विकास और खासतौर से शैक्षणिक विकास का मामला हमेशा ठंडे बस्ते में रहा है। नतीजे के तौर पर Aligarh Muslim University किशनगंज का ब्रांच ना ही सरकार को याद है और ना ही विपक्ष को। अब सवाल है कि क्या युनिवर्सिटी का कैंपस कभी बन पाएगा या सिर्फ कागज़ी बयान में ही यूनिवर्सिटी की तरक्की होती रहेगी।

 

फातमी कमेटी

फातमी कमेटी के अध्यक्ष रहे अली अशरफ फातमी का कहना है कि ना उम्मीद नहीं होना चाहिए। यूनिवर्सिटी का काम चल रहा है, केंद्र की सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए साथ ही एएमयू प्रशासन भी किशनगंज ब्रांच के मामले में कुछ नहीं कर रही है। यूनिवर्सिटी को भी संजीदा होने की ज़रुरत है। फातमी का कहना है कि एएमयू का कैंपस बन जाने से सीमांचल का शैक्षणिक मसला काफी हद तक हल हो सकेगा।

 

Fatmi Committee Report

 

एएमयू प्रशासन

Aligarh Muslim University प्रशासन ने भी अपने किशनगंज ब्रांच को लेकर कुछ करना ज़रुरी नहीं समझा है। केंद्र की सरकार ने अपने बजट में एएमयू किशनगंज ब्रांच के लिए कोई पैसा देना मुनासिब नहीं समझा है। जानकारों का कहना है कि एएमयू प्रशासन को इस मामले में पहल करना चाहिए ताकि यूनिवर्सिटी का मसला हल हो सके।

 

किशनगंज के सांसद

किशनगंज के मौजूदा एमपी डॉ मोहम्मद जावेद ने पार्लियामेंट में इस मुद्दे को उठा कर फिर से लोगों का ध्यान इस तरफ लाने की कोशिश की है। सांसद मोहम्मद जावेद के मुताबिक अब तक यूनिवर्सिटी के लिए सरकार की तरफ से 10 करोड़ रुपया ही दिया जा सका है। कैंपस के लिए टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की नियुक्ति की जानी चाहिए और इसमें देरी नहीं होनी चाहिए। एमपी का कहना है कि सीमांचल के इलाके को शैक्षणिक तौर पर आगे बढ़ाने के लिए ये अत्यंत ज़रुरत है।

 

एम आई एम

सीमांचल में पांच विघानसभा की सिटों को जीतकर बिहार की सियासत में अपना दमखम दिखा रही एम आई एम के लिए ये मसला एक बड़ा मुद्दा है। एम आई एम Aligarh Muslim University किशनगंज ब्रांच के लिए कुछ नहीं करती है तो लोगों को मायूसी होगी लिहाज़ा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल इमान का कहना है कि राज्य सरकार की लापरवाही के कारण किशनगंज का मामला सुर्खियों में नहीं आ रहा है। अख्तरूल इमान का कहना है कि नीतीश कुमार को इस मामले में पहल करना चाहिए ताकि सीमांचल जैसे पिछड़े इलाके में Aligarh Muslim University की ब्रांच तालीम की शमां रौशन कर सके। साथ ही केंद्र सरकार जो सब का साथ और सब की तरक्की की बात करती है, उसे भी इस मामले में पहल करना चाहिए लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी किशनगंज के मामले पर सरकार का रवैया दोस्ताना नहीं है।

 

Akhtarul Iman, State president, All India Majlis-e-Ittehadul Muslimeen

 

डबल इंजन की सरकार

बिहार में डबल इंजन की सरकार है। ये बात बिहार का विपक्ष हमेशा कहता रहा है। खासतौर से अपोजिशन लीडर तेजस्वी यादव इस जुमले का खूब इस्तेमाल करते हैं। डबल इंजन की सरकार कहती है कि इंसाफ के साथ विकास करना उनका एजेंडा है और नीतीश कुमार का नारा है कि उनकी सरकार सुशासन की सरकार है और वह वोट बैंक की सियासत से दूर लोगों के कल्याण का काम करने में विश्वास रखते हैं। ऐसे में ये सवाल अपनी जगह पर वर्षों से खड़ा है कि Aligarh Muslim University किशनगंज ब्रांच का क्यों अब तक कैंपस नहीं बन सका है और ना ही टिचरों की नियुक्ति हुई है। जानकारों का कहना है कि क्या किशनगंज में Aligarh Muslim University की ब्रांच कायम होने से सीमांचल के साथ साथ बिहार की तरक्की नहीं होगी। उनके मोताबिक यूनिवर्सिटी के लिए ज़मीन राज्य सरकार ने ही दिया है ऐसे में अगर नीतीश कुमार इस सिलसिले में पहल करें तो हालात बदल सकते हैं।

 

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