Imarat Shariah Bihar और मुसलमान
इमारत-ए-शरिया का नेतृत्व
पटना में स्थित इमारत-ए-शरिया का नाम किसी तारुफ का मोहताज नही है। पूरे देश में Imarat Shariah Bihar को काफी इज्जत के साथ याद किया जाता है। एक सौ साल का सफर पूरा करने वाला मुसलमानों का ये संस्था अपने आप में एक अलग पहचान रखता है। ये संस्था यूं तो पूरे देश के मुसलमानों के नेतृत्व का दावा करता है लेकिन उसका असर और दायरा तीन राज्यों में फैला हुआ है। वो राज्य हैं बिहार, झारखंड और उड़ीसा। इमारत-ए-शरिया को इमारत-ए-शरिया बिहार, झारखंड और उड़ीसा के नाम से जाना जाता है। इस संस्था को क्यों बनाया गया और मुसलमानों के बीच इमारत-ए-शरिया क्यों इतना अहम है आइए जानने की कोशिश करते हैं।
इमारत-ए-शरिया की स्थापना
1857 से पहले मुसलमानों को अलग से कोई ऐसी संस्था बनाने की ज़रुरत नहीं थी जो उनके धार्मिक मुल्यों और रीति-रिवाजों को बाकी रखने के साथ-साथ इस्लाम के उसूलों पर लोगों को चलाने की कोशिश करे। 1857 के बाद मुगल सल्तनत के खत्म होने पर धार्मिक लोगों ने मुसलमानों को एकजुट करने, उन्हें दिलासा देने, उनकी हौसला अफज़ाई करने और धार्मिक मुल्यों से लोगों को वाकिफ कराने के लिए एक संस्था कायम करने पर जोर दिया। आज़ादी से पहले खिलाफत आंदोलन के दरमियान मुस्लिम सकॉलर और उलेमा ने मुसलमानों की मज़हबी रहनुमाई के लिए एक संस्था बनाने का मंसूबा बनाया। उस वक्त के मुस्लिम रहनुमा मौलाना अबुल मोहासिन मोहम्मद सज्जाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, मौलाना सैयद मोहम्मद अली मुंगेरी और मौलाना सैयद शाह बदरुद्दीन कादरी की कोशिशों से 1921 में इमारत-ए-शरिया बिहार, झारखंड और उड़ीसा की स्थापना की गई। तब से लेकर आज तक Imarat Shariah Bihar अपने मकसद में कामयाब होता जा रहा है। इमारत ने न सिर्फ मुस्लिम समाज की रहनुमाई की है बल्कि साम्प्रदायिक सद्वभावना और भाईचारा बनाने की भी कामयाब कोशिश की है।
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अमीर-ए-शरीयत
इमारत-ए-शरिया का सबसे बड़ा ओहदा अमीर-ए-शरीयत का होता है। अब तक सात अमीर-ए-शरीयत ने इमारत का नेतृत्व किया है। अमीर-ए-शरीयत का मुस्लिम समाज में काफी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। Imarat Shariah Bihar के सारे फैसले अमीर-ए-शरीयत करते हैं। अमीर-ए-शरीयत की नज़र मुस्लिम समाज के मसले पर भी रहती है। वो एक साथ जहां मज़हबी मामलों का निपटारा करते हैं वहीं सियासी तौर पर भी उनका एक अलग असर होता है। कह सकते हैं कि मज़हब और सियासत दोनों पर बारीक निगाह रखने वाला अमीर-ए-शरीयत के ओहदे पर बैठा शख्स मुसलमानों के मसले को अपनी अकल मंदी और दूरंदेशी से हर मोर्चे पर हल कराने की कोशिश करता है। यही कारण है कि मुस्लिम समाज अपने अमीर के नेतृत्व को कबूल करता है साथ-साथ उनके मार्गदर्शन में चलने की कोशिश करता है।
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अमीर-ए-शरीयत का चुनाव
अमीर-ए-शरीयत का बाकायदा चुनाव होता है। इसके लिए इमारत-ए-शरिया की तरफ से साफ साफ नियम बनाया गया है। अमीर-ए-शरीयत को चुनने का अख्तियार एक कमिटी को है जिसका नाम अरबाब हल ओ अकद है। अरबाब हल ओ अकद में 851 सदस्य होते है। ये सदस्य बिहार, झारखंड और उड़ीसा तिनों राज्यों के होते हैं। 851 सदस्यों पर निर्भर करता है कि वो किस को अपना अमीर बनाते हैं। ये 851 वो लोग होते है जिनका अपने इलाके पर असर होता है। वो स्कॉलर होते हैं, उलेमा, सियासी रहनुमा और बाअसर शख्सियत होते हैं। उनकी तरफ से चुने गए अमीर को पूरे बिहार, झारखंड और उड़ीसा के मुसलमान कबूल करते हैं और वो भी अमीर-ए-शरीयत को अपना अमीर यानी रहनुमा मानते हैं। मौलाना वली रहमानी सातवें अमीर-ए-शरीयत थे। उनके निधन के बाद ये ओहदा अभी खाली है। जिस का चुनाव जल्द होने वाला है।
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आठवीं आमीर-ए-शरीयत
आठवीं अमीर-ए-शरीयत का चुनाव 08 अगस्त को होगा। अमीर-ए-शरीयत के चुनाव कराने की जिम्मेदारी नायब (डिप्टी) अमीर-ए-शरीयत पर है। मौलाना वली रहमानी ने मौलाना शमशाद रहमानी को अपना नायब बनाया था। मौलाना शमशाद रहमानी नायब अमीर-ए-शरीयत होने के नाते नये अमीर-ए-शरीयत का चुनाव कराएंगे। इसके लिए तिनों सुबों यानी बिहार, झारखंड और उड़ीसा में जम कर सियासत हो रही है। अमीर के चुनाव में पहले भी सियासत होती रही है लेकिन इस बार सियासी बयानबाजी का बाज़ार गर्म है। इमारत-ए-शरिया के मजलीस-ए-शुरा के सदस्यों ने इस पर सवाल खड़ा किया है। मौलाना अबुल कलाम कासमी और मौलाना डॉ मोहम्मद आलम कासमी का कहना है कि नायब अमीर-ए-शरीयत नियमों को उल्लधन करते हुए चुनाव में धांधली करने की कोशिश कर रहे हैं। जबकी नायब अमीर-ए-शरीयत मौलाना शमशाद रहमानी का कहना है कि वो बिल्कुल साफ माहौल में चुनाव कराना चाहते हैं। आरोप प्रत्यारोप के बीच ये साफ है कि मामला उतना सुलझा हुआ नही है जितना इमारत की तरफ से दिखाने की कोशिश की जारही है। जानकारों का कहना है कि अमीर के चुनाव में अगर नियमों को ताक पर रखा गया तो एक तरह से ये इमारत के पतन की शुरुआत होगी। उनके मुताबिक एक सौ साल का सफर पूरा करने वाला संस्था सियासी उलझनों में फंस कर अपना वजूद खतरे में डालने की खूद कोशिश करने लगे तो ये अपने आप में एक बेहद अफसोस नाक बात है।
गोल्डन पीरियड
Imarat Shariah Bihar का गोल्डन पीरियड उस समय शुरु हुआ जब मौलाना सैयद निजामुद्दीन इमारत-ए-शरिया बिहार के छठे अमीर-ए-शरीयत बने। मौलाना सैयद निज़ामुद्दीन के समय इमारत का बजट कुछ लाख रुपया था जो बढ़ कर करोड़ में जा पहुंचा। इमारत-ए-शरिया से लोगों का जुड़ाव शुरु हुआ। इमारत ने तकनीकी एदारे, अस्पताल, मदरसे कायम किये साथ साथ भवन का निर्माण हुआ। सालाना बजट बढ़ने से इमारत-ए-शरिया का काम भी बढ़ना शुरु हो गया। उस समय मौलाना अनीसुर्रहमान कासमी इमारत-ए-शरिया के महासचिव थे और मौलाना सैयद निजामुद्दीन अमीर-ए-शरीयत। मौलाना निजामुद्दीन के निधन के बाद मौलाना वली रहमानी अमीर-ए-शरीयत बने लेकिन उनको ज्यादा समय नहीं मिल सका। मौलाना वली रहमानी अपने मंसूबों को ज़मीन पर उतार पाते कि उनका निधन हो गया।
सरकार
सरकार के साथ Imarat Shariah Bihar का तालमेत हमेशा अच्छा रहा है। मौलाना निजामुद्दीन के समय इमारत के कार्यकर्ताओं के पास ज्यादा आजादी थी। वो किसी से भी मिल सकते थे और अपनी बात रख सकते थे। मौलाना निजामुद्दीन से मिलना काफी आसान था। कोई भी व्यक्ती कभी भी उनसे मिल सकता था। नतीजे के तौर पर इमारत का दायरा बढ़ता गया। इमारत से आम लोगों का जुड़ाव और सरकार से बेहतर ताल मेल होने के कारण इमारत-ए-शरिया का काम भी हुआ और नाम भी।
नेतृत्व
Imarat Shariah Bihar ने पहले दिन से ही मुसलमानों की समाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास को अपने एजेंडे में रखा है। इस बात की हर मुमकिन कोशिश कि है की मुसलमानों के बुनियादी मसले हल हो। इमारत-ए-शरिया की ये मूहीम काफी हद तक कामयाब रही है। कई तालीमी एदारों की स्थापना हुई है और कई तालीमी एदारों को कायम करने का मंसूबा है। वहीं रोज़गार, स्वास्थ्य और सियासी हिस्सेदारी को लेकर इमारत ने मुसलमानों का नेतृत्व किया है। जानकारों का कहना है कि नये अमीर-ए-शरीयत का चुनाव इमारत-ए-शरिया के शर्त और नियम के मुताबिक हुआ तो इसमें कोई शक नहीं कि ये एदारा अपनी तरक्की की रफ्तार के साथ चलता रहेगा।
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