Imarat Shariah Patna
Imarat Shariah Patna: इमारत-ए-शरिया झारखण्ड बनाना एक बड़ी साजिश
देश के मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन इमारत-ए-शरिया क्या दो भाग में बंट गया है। हाल में इमारत-ए-शरिया झारखण्ड के नाम से एक अलग तंज़ीम बनाने का एलान किया गया है। मुफ्ती नजर तौहीद मजाहिरी को इमारत-ए-शरिया झारखण्ड का नया अमीर-ए-शरियत चुना गया है। इस मामले पर मुस्लिम समाज ने सख्त नाराजगी का इजहार किया है। इमारत-ए-शरिया के अरबाबे हल व अकद के मेंबर ने इसे एक साजिश का नाम दिया है। गौरतलब है कि अरबाबे हल व अकद के मेंबर ही अमीर-ए-शरियत का चुनाव करते हैं। |
इमारत-ए-शरिया बिहार, झारखण्ड और उड़ीसा करीब एक सौ साल से देश के मुसलमानों का नेतृत्व करती आ रही है। देश के मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन इमारत-ए-शरिया को हाल के दिनों में दो भागों में बांटने की कोशिश की गई है। इमारत-ए-शरिया झारखण्ड के नाम से एक अलग तंज़ीम बनाने का एलान कर दिया गया है। मुफ्ती नजर तौहीद मजाहिरी को इमारत-ए-शरिया झारखण्ड का नया अमीर-ए-शरियत चुना गया है। मुफ्ती नजर तौहीद मजाहिरी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य होने के साथ-साथ इमारत-ए-शरिया ट्रस्ट के मेंबर भी है। इसके अलावा वो इमारत के दूसरे कई कमेटियों के मेंबर भी रहे हैं। Imarat Shariah Patna को इस तरह से अलग करने पर मुस्लिम समाज ने सख्त नाराजगी का इजहार किया है।
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झारखण्ड को नजरअंदाज करने का है आरोप
जानकारों के मुताबिक जिस बात पर झारखण्ड को Imarat Shariah से अलग होने का दावा किया है वो बात ही गलत है। दरअसल इमारत-ए-शरिया पर झारखण्ड को नजरअंदाज करने का इल्जाम लगाया गया है। हालांकि सच्चाई ये है की झारखण्ड से जितना इमारत-ए-शरिया को चंदा मिलता है उससे ज्यादा रकम उस सूबे पर खर्च किया जाता है।
उसी तरह झारखण्ड में Imarat Shariah की तरफ से कई स्कूल खोले गए हैं। ऐसे में झारखण्ड को नजरअंदाज करने का आरोप अपने आप में ही कई सारा सवाल खड़ा करता है। उधर इमारत-ए-शरिया झारखण्ड बनाने पर Imarat Shariah Patna से जुड़े लोगों ने उसे एक साजिश का नाम दिया है। जेडीयू के प्रदेश महासचिव और इमारत-ए-शरिया के अरबाबे हल व अकद के मेंबर जो इमारत के अमीर-ए-शरियत का चुनाव करती है, मेजर इकबाल हैदर खान का कहना है कि मुफ्ती नजर तौहीद को एक मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया गया है।
इमारत-ए-शरिया एक सोच का नाम है
मेजर इकबाल हैदर खान का कहना है कि इमारत-ए-शरिया देश के मुसलमानों का एक अजीम संगठन है। उनके मुताबिक इमारत-ए-शरिया एक सोच का नाम है जिस पर देश के मुसलमानों को एतमाद है। उनका कहना है कि इमारत को कोई तोड़ नहीं सकता है। इमारत-ए-शरिया को झारखण्ड में तोड़ने की कोशिश की गई है, जो निहायत ही गलत है। उनका कहना है कि देश में मुस्लिम तंज़िमों की कोई कमी नहीं है लेकिन इमारत ने जितना लोगों की भलाई के लिए काम किया है, उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं है। उन्होंने कहा की झारखण्ड के लोगों को भी समझना चाहिए कि इत्तेहाद में ही ताकत है। आज मुस्लिम समाज की स्थिति पहले के मुकाबले ज्यादा खराब है। ऐसे में एक सौ साल की अजीम तारीख रखने वाली तंज़ीम को तोड़ना एक तरह से मुस्लिम समाज की रीढ़ की हड्डी को तोड़ने के बराबर है। उन्होंने मुस्लिम समाज से अपील किया है कि वक्त की नजाकत को समझें और इमारत-ए-शरिया की उस अजीम कुर्बानियों और काम को याद करें कि किस तरह से इस संगठन ने लोगों के बुनियादी मसले को हल करने और खासतौर से मुसलमानों के मजहबी, मिल्ली, समाजी, तालीमी, आर्थिक और मौलिक अधिकारों के लिए काम किया है।
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