Indian Independence Day
जब जात पात और धर्म को किनारे कर हमने आजादी के लिए संघर्ष किया
PATNA- गुजरे हुए 75 सालों में हमने काफी तरक्की की है। आज़ादी के दीवानों ने बगैर किसी जाती और धर्म की परवाह किए देश को आजाद कराने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। मुल्क के लिए मर मिटने वाले हज़ारों ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद होते हुए नहीं देखा। देश पर अपनी जान निक्षावर करने वाले उन अज़ीम हस्तियों ने गुलामी की जंजीरों को अपनी जान की कुर्बानी दे कर तोड़ा था। आज़ादी के लिए लड़ने वाले सैकड़ों लोगों को फांसी के तख्ते पर लटकाया गया और सैकड़ों ने देश की आज़ादी के बाद देश की तरक्की में अपनी ताकत खपाई। ऐसे वीर सुपूतों की अज़ीम जद्दोजहद से मिली आजादी में हम सांस ले रहे हैं। तो याद करने का वक्त है कि देश की खुशहाली और समानता के लिए हम क्या कर रहे हैं। देश का जरह जरह हमसे सवाल करता है कि गुलामी का सूरज लहु लहान हो कर गुरुब हो चुका ये आज़ादी का आफताब है जो आब ताब के साथ चमक रहा है। आज़ादी की इन खुब सुरत और हसीन सुबह व शाम में हम समानता और सब के साथ बराबरी का सुलूक कर रहे हैं। अगर नहीं कर रहे हैं तो Indian Independence Day के अवसर पर हमें समानता का माहौल बनाने की जरूरत है।
Indian Independence Day के मौके पर विकसित होते भारत का जश्न
पिछले सात दशक में देश ने अपनी तरक्की की मिसाल कायम की है। कृषि प्रधान देश आधुनिक जमाने का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से तैयार खड़ा है। स्वतंत्रता के लिए अपनी जिंदगी को दाव पर लगाने वाले उन अज़ीम हस्तियों ने ये ख्वाब देखा था कि आज़ादी के बाद हमारी अपनी सरकार देश में समानता कायम करेगी। जहां किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा, जहां शिक्षा पर सब का अधिकार होगा, जहां विकास हर घर के चूल्हे तक पहुंचेगा, जहां गरीब के चिराग की रौशनी में भी खुशियों की झलक महसूस होगी, जहां गांव की पगडंडियों पर चलते हुए लोगों में आत्मविश्वास की लहर होगी और जहां गरीबी और अमीरी के बीच एक जबरदस्त खाई नहीं होगी लेकिन क्या गुजरे हुए इन वर्षों में आज़ादी की वो रौशनी तमाम लोगों के घरों तक पहुंच पाई है। शायद आज Indian Independence Day के मौके पर एक बार फिर से इस पर गौर करने की जरूरत है।
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बुनियादी सुविधाओं को हासिल करने की जद्दोजहद
इस में कोई शक नहीं की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक बराबरी, कल कारखाने, स्कूल और कालेज के साथ-साथ बुनियादी सुविधाओं में बदलाव हुआ है। लगातार देश विकास के रफ्तार का हिस्सा बनता रहा है लेकिन ये भी सच्च है कि देश का एक बड़ा तबका आज भी महरूमी, गरीबी, बीमारी, निरक्षरता, बेरोजगारी, सुविधाओं की कमी में जिने पर मजबूर है। क्या ऐसे लोगों के बारे में Indian Independence Day के इस अज़ीम मौके पर फिर से गौर करने की जरूरत नहीं है। अगर है तो सरकार के साथ-साथ समाज को भी आगे आना चाहिए, ताकि समाज के आखिरी पायदान पर खड़े लोगों के घर के चूल्हे को भी देश का बजट खुशियों का एहसास कराए। क्या ऐसा नहीं है कि महंगाई करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रही है। अगर ऐसा है तो समानता की बात बेमानी है और इस समस्या को हल करने की कोशिश सरकारी स्तर पर की जानी चाहिए।
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करोड़ों लोग हैं शिक्षा से दूर
शिक्षा की बात करें तो देश में करीब 25 करोड़ की आबादी आज भी साक्षर नहीं हो पाई है। 11 साल पहले शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया था। 14 साल तक की उम्र के तमाम बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने की बात थी। जानकारों के मुताबिक देश की आजादी का मतलब समानता है लेकिन जिस समानता को लेकर स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की बाजी लगाई उसकी झलक कम ही दिखाई देती है। खासतौर से आर्थिक एतबार से कमज़ोर लोग कशमकश की हालत में जीने पर मजबूर हैं।
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स्वतंत्रता दिवस
Indian Independence Day के इस पवित्र मौके पर देश का कोना-कोना राष्ट्र प्रेम की भावना से सराबोर है। वो भी जिनकी जिंदगी महज़ दाल रोटी के इंतज़ाम कर पाने की जद्दोजहद में ही खत्म हो जाती है और वो भी जिनके लिए देश का हर इकाई काम करता है। कृषि प्रधान देश का वो किसान भी अपने खेतों में राष्ट्र गान करते हुए स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाता है, जिनके लिए अपने घर को चला पाना ही दुनिया का सबसे बड़ा संघर्ष होता है। गांवों का ये देश अपनी आज़ादी के जश्न में सिर्फ तिरंगा फहरा कर ही गर्व महसूस नहीं करता है बल्कि दिलों में देश की मुहब्बत लिए सच्ची आस्था के साथ अपने गांवों में स्वतंत्रता दिवस के जश्न की मिठाई भी बांटता है। उस मिठाई की लज्जत में सिर्फ खुशियां नहीं बस्ती है बल्कि भाई चारा भी बस्ता है। जहां हम सब भाई-भाई की कल्पना नहीं करते बल्कि सच्च में भाई-भाई बनने की कोशिश करते हैं। भाई चारा का माहौल और समानता की बात ही सही मायनों में आज़ादी का मकसद है और तरक्की का पैमाना भी।
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