Learning Urdu Language
राष्ट्रीय स्तर पर होना चाहिए Learning Urdu Language का काम
नई शिक्षा नीति ने भी स्पष्ट किया है कि हर बच्चे को अपनी मादरी जबान में तालीम हासिल करने का अधिकार है। ऐसे में उर्दू के संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर काम नहीं किया जाना चिंता की बात है। उर्दू के विकास की मांग करना कोई सियासी मांग नहीं है बल्कि ये एक ऐसी मांग है जिसका संबंध सीधे तौर पर छात्रों से है और भारत की सांस्कृतिक विरासत से है। |
मातृभाषा के विकास के बगैर छात्रों की बेहतर तालीम की कल्पना नहीं की जा सकती है। हर बच्चे को अपनी मादरी जबान में तालीम हासिल करने का अधिकार है। सरकार भी मातृभाषा के विकास के सिलसिले में अपने आप को गंभीर बताती है लेकिन हकीकत में ऐसा बिल्कुल नहीं है। ये कहना है ऑल इंडिया मिल्ली कौंसिल का। मिल्ली कौंसिल के उपाध्यक्ष मौलाना अनीसुर्रहमान कासमी ने कहा कि मौजूदा वक्त में अलग-अलग देशों में मातृभाषा के विकास का रुझान बढ़ा है। हमारे देश की नई शिक्षा नीति ने भी ये साफ किया है कि हर बच्चे को अपनी मादरी जबान में तालीम हासिल करने का मौका मिलना चाहिए। फिर मादरी जबान की तरक्की के संबंध में काम नहीं किया जाना सरकार की नियत पर सवाल खड़ा करता है। मिल्ली कौंसिल ने उर्दू भाषा के संबंध में कहा कि उर्दू भाषा का राष्ट्रीय स्तर पर विकास होना चाहिए। उर्दू किसी एक मजहब की भाषा नहीं है। उर्दू देश के हर शख्स की जबान है लेकिन देखा ये जाता है कि उर्दू के साथ केंद्र व राज्यों की सरकार इंसाफ नहीं करती है। भाषा की तरक्की एक सभ्य समाज की निशानी होती है। हमारी तहजीब, संस्कृती और इतिहास हमारी भाषाओं के दामन में ही मौजूद है। क्या ये जरूरी नहीं की हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को मजबूत बनाने के लिए अपनी मादरी जबान का विकास करें और उसके अधिकारों की बात करें। मिल्ली कौंसिल ने कहा की Learning Urdu Language की व्यवस्था करने की जरूरत है।
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ऑल इंडिया मिल्ली कौंसिल की मांग
ऑल इंडिया मिल्ली कौंसिल के मुताबिक उर्दू पूरे देश की जबान है। उर्दू पढ़ने वाले करोड़ों बच्चों के लिए सरकार की तरफ से पहल की जरूरत है। इसके लिए सरकार की तरफ से स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति के साथ-साथ उर्दू पर काम करने वाली सरकारी संस्थाओं का विकास करना होगा। उर्दू भाषा की बात तो की जाती है लेकिन सरकारी स्तर से उर्दू पर उस तरह से ध्यान नहीं दिया जाता है जिस तरह से ध्यान देने की जरूरत होती है। मिल्ली कौंसिल का कहना है कि हम ये जरूर कहते हैं कि सरकार मातृभाषा में छात्रों को शिक्षा देने का मंसूबा रखती है। सरकार बच्चों को उनकी मादरी भाषा में तालीम दिलाने को उनका हक भी बताती है। ये सब बाते सही है लेकिन सरकार मातृभाषा के विकास के सिलसिले में कुछ करना मुनासिब नहीं समझती है। जाहिर है सिर्फ एलान से किसी भाषा का विकास नहीं होता है जब तक की सरकार की तरफ से ठोस पहल नहीं की जाए। उर्दू पर साफ नीति अगर बनाई जाएगी तो Learning Urdu Language का मसला ना सिर्फ हल होगा बल्कि उर्दू भाषा का विकास भी मुमकिन हो सकेगा।
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उर्दू वालों की जवाबदेही
ऑल इंडिया मिल्ली कौंसिल का कहना है कि सरकार के साथ-साथ उर्दू वालों को भी अपनी जवाबदेही तय करनी होगी। आमतौर पर उर्दू के सिलसिले में उर्दू वालों का रवैया भी अच्छा नहीं होता है। कोई भी जबान उसके बोलने और पढ़ने वालों की गफलत के बाद ही बदहाली के कागार पर पहुंचती है। अगर उर्दू वाले अपनी भाषा को लेकर गंभीर हो जाए तो सरकार भी पहल करेगी और उर्दू को उसका अधिकार भी आसानी से हासिल हो सकेगा। मिल्ली कौंसिल के उपाध्यक्ष मौलाना अनीसुर्रहमान कासमी का कहना है कि देश के कई राज्यों में बड़ी संख्या में उर्दू बोलने वाले लोग हैं लेकिन अधिकतर राज्यों में उर्दू की संस्थाओं और उर्दू की पढ़ाई का मुनासिब इंतजाम नहीं है। ये चिंता की बात है। किसी सूबे में उर्दू के लाखों रुपये की किताबें बिक जाती है और किसी सूबे में उर्दू की किताब कोई खरीदता तक नहीं है। जाहिर है भविष्य में Learning Urdu Language के साथ और भी मुश्किलें पेश हो सकती है। ऐसे में सरकार के साथ-साथ समाज को पहल करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को अपनी मादरी जबान में तालीम हासिल करने का मौका मिल सके।
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बिहार में उर्दू
बिहार में उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा हासिल है। सरकार की तरफ से उर्दू के संबंध में काम करने का दावा भी किया जाता है लेकिन क्या सचमुच उर्दू के सिलसिले में काम हो रहा है। मिल्ली कौंसिल का कहना है कि जब आप जमीनी सच्चाई पर गौर करेंगे तो नतीजा उससे अलग होगा। सरकार की उर्दू संस्थाएं कई सालों से काम नहीं कर रही है। मिसाल के तौर पर उर्दू अकादमी का वर्षों से गठन नहीं किया गया है जबकि उर्दू अकादमी के अध्यक्ष खुद मुख्यमंत्री होते हैं। उसी तरह उर्दू परामर्शदाता समिति विघटित है। स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की जगहे वर्षों से खाली पड़ी है। उर्दू एदारों की खस्ताहाली से ये बात साफ हो जाता है कि राज्य में उर्दू की हालत क्या है। ऑल इंडिया मिल्ली कौंसिल के उपाध्यक्ष का कहना है कि राज्य सरकार को इस सिलसिले में गौर करना होगा। ये कोई सियासी मांग नहीं है बल्कि ये एक ऐसी मांग है जिसका संबंध सीधे तौर पर छात्रों से है और भारत की सांस्कृतिक विरासत से है। अगर सरकार इस संबंध में गंभीरता से काम करती है तो उसका फायदा सबसे ज्यादा उन को होगा जिन पर देश का भविष्य टिका है, यानी छात्रों का। हम Learning Urdu Language मातृभाषा का विकास चाहते हैं और सरकार की तरफ से भी इस तरह के एलान होते रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गंभीर व्यक्ति हैं और उनका फैसला वर्तमान के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए भी होता है। ऐसे में मिल्ली कौंसिल की मांग है कि उर्दू को अलग से कुछ नहीं भी मिले तो सिर्फ दूसरी सरकारी जबान का उसको अधिकार और सुविधा दिया जाए ताकि जो बच्चे अपनी मादरी जबान में पढ़ना चाहते हैं उन्हें किसी दुश्वारी का समाना नहीं करना पड़ें।