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Minority Institutions

 

Minority Institutions

 

बिहार के अल्पसंख्यक संस्थान (Minority Institutions)

PATNA- बिहार में अल्पसंख्यक समाज की आबादी 17 फीसदी है। राज्य सरकार की तरफ से अल्पसंख्यकों के विकास के लिए कई संस्थाएं कायम की गई है। सरकार की Minority Institutions लोगों के कल्याण के लिए काम करती रही है। लेकिन अल्पसंख्यको के नाम पर काम करने वाले ज्यादातर एदारों की हालत मौजूदा समय में खस्ताहाल है। कई एदारों का गठन नहीं हुआ है तो कई एदारे किसी तरह अपना वक्त काट रहे हैं। जानकारों के मुताबिक हाशिए पर खड़े अकलियती समाज के विकास का दावा सरकार करती तो है लेकिन उसे अमली जामापहनाने की कोशिश नहीं की जाती है।

 

Nitish Kumar, Chief Minister of Bihar.

 

 

बुनियादी सुविधाओं को हल करने की पहल

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य के विकास को लेकर हमेशा काम करने का दावा करते हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में बदलाव हुआ है इससे इंकार नहीं है। राजधानी पटना से लेकर दूरदराज के इलाकों में बदलवा की आहट महसूस की जाती है। बुनियादी सुविधाओं को हल करने की सरकार ने कोशिश ज़रुर की है। जानकारों के मुताबिक नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद काम की जो रफ्तार शुरु हुई थी अब वो धीमी हो गई है। अल्पसंख्यकों की हालत और भी खराब है। सरकार के जो Minority Institutions हैं भी उसकी हालत हाथी के दांत जैसी है।

 

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अल्पसंख्यक संस्थाओं का हाल

कहने के लिए बिहार में Minority Institutions की कमी नहीं है। अल्पसंख्यक संस्थाओं को कायम करने का मकसद अल्पसंख्यकों का विकास है लेकिन जब आप बिहार मदरसा एजुकेशन बोर्ड, बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड, बिहार राज्य शिया वक्फ बोर्ड, बिहार उर्दू अकादमी, अंजुमन तरक्की उर्दू बिहार, मौलाना मज़हरुल हक विश्वविद्यालय, अल्पसंख्यक आयोग, अल्पसंख्यक वित्तीय निगम इत्यादि संस्थाओं के काम पर नज़र डालेगें तो मायूसी हांथ लगेगी।

 

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वक्फ बोर्ड

समाज के जानकार कहते हैं कि अकलियतों के मसले हल करने की अपील सरकार से की जाती है जबकि हज़ारों करोड़ की संपत्ति रखने वाला वक्फ बोर्ड समाज के विकास के लिए कुछ नहीं कर पा रहा है। हालत ये है कि वक्फ बोर्ड आज भी सरकार के अनुदान के भरोसे अपना दिन काटता है जबकि वक्फ बोर्ड के पास हज़ारों करोड़ की जायदाद है। हैरानी की बात है कि सात दशक गुजरने के बाद भी वक्फ बोर्ड समाज की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है। जबकि दूसरे सूबों में वक्फ बोर्ड की हालत अच्छी है। वक्फ बोर्ड जहां अल्पसंख्यकों के शिक्षा के सिलसिले में गंभीर है वहीं उनकी शैक्षणिक मदद कर हाशिए पर खड़े समाज को मुख्यधारे में शामिल करने की कामयाब कोशिश करता नज़र आता है लेकिन बिहार की शिया व सुन्नी वक्फ बोर्ड अपने कर्मचारियों के वेतन का ही जुगाड़ लगा पाने में नाकाम रहता है। ज़ाहिर है ऐसे में वक्फ बोर्ड से कोई उम्मीद करना बेमानी है।

 

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अल्पसंख्यक वित्तीय निगम

नीतीश कुमार की सरकार ने अल्पसंख्यक वित्तीय निगम के जरिए अल्पसंख्यक बेरोज़गार नौजवानों को स्वरोजगार से जोड़ने की पहल की है। इसके लिए अल्पसंख्यक वित्तीय निगम को हर साल एक सौ करोड़ रुपया दिया जाता है। वित्तीय निगम की गंभीरता का आलम ये है कि निगम में पैसे रखे रह जाते हैं और बेरोजगार नौजवानों को कर्ज नहीं मिलता है। जानकारों का कहना है कि सरकार ने पैसा ज़रुर दिया है लेकिन उस पैसे से अल्पसंख्यको को फायदा नहीं होता है। सरकार का दावा है कि वो अल्पसंख्यकों के विकास के लिए गंभीर है लेकिन सरकार की वो योजनाएं जिसको लेकर मुख्यमंत्री की तारीफ होती रही है वह भी ज़मीन पर लागू नहीं होती है। ऐसे में नीतीश कुमार का सुशासन का दावा पानी का बुलबुला नज़र आता है।

 

बिहार मदरसा एजुकेशन बोर्ड

लगतार कई सालों से मदरसा बोर्ड कई तरह के विवाद से घिरा रहा है। मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष पर सवाल खड़े होते रहे हैं लेकिन सरकार ने इस मसले को हल करने की कोशिश नहीं की है। सरकार ने उस विवाद के सिलसिले में साफ-साफ कुछ भी कहना ज़रुरी नहीं समझा है। जांच के नाम पर खानापूर्ति की गई है। उधर उर्दू अकादमी को तीन सालों से गठन नहीं किया गया है। ज़ाहिर है गठन नहीं होने से उर्दू अकादमी का काम बंद है।

 

मौलाना मज़हरुल हक विश्वविद्यालय

काफी मुश्किल से पटना के मीठापुर में सरकार ने मौलाना मज़हरुल हक विश्वविद्यालय के लिए करीब पांच एकड़ ज़मीन दिया था। अब विश्वविद्यालय का भवन करीब-करीब बन गया है लेकिन विश्वविद्यालय की दूसरी ज़रुरतें अभी भी अधूरी है। मौलाना मज़हरुल हक विश्वविद्यालय से मदरसों के उच्च शिक्षा को जोड़ा गया है लेकिन किसी भी उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्ति की स्वीकृति नहीं दी गई है। ऐसे में विश्विविद्यालय को बनाने का मकसद आज भी अधूरा है।

 

अल्पसंख्यक आयोग

अल्पसंख्यक आयोग ज़िलों के अफसरों को खत लिख कर बार-बार ये अपली कर रहा है कि सरकार की योजनाओं को ज़मीन पर लागू कराने की कोशिश की जाए। अल्पसंख्यक आयोग का कहना है कि अल्पसंख्यको के विकास के नाम पर सरकार की दर्जनों योजनाएं चल रही है। कुछ स्कीम से लोगों को फायदा भी हो रहा है लेकिन ज्यादातर स्कीम जमीन पर लागू नहीं है। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष प्रो. यूनुस हुसैन हकीम इस बात पर अफसोस करते हैं। उनका कहना है कि आयोग की तरफ से अफसरों से अपील की जारही है। मुमकिन है आने वाले दिनों में तस्वीर बदले और सरकार की योजनाओं से लोगों को फायदा हो।

 

एम आई एम की अपील

एम आई एम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान का कहना है कि पटना में कायम मदरसा इस्लामिया शमसुल होदा, राज्य का अकेला सरकारी मदरसा है लेकिन पटना में होने के बाद भी सरकार ने उस मदरसे में वर्षों से खाली शिक्षकों के ओहदों पर नियुक्ति करने की ज़हमत नहीं की है। नतीजे के तौर पर अकलियतों का शानदार एदारा खस्ताहाली के कागार पर खड़ा है। शिक्षक नहीं होने से मदरसों की पढ़ाई पूरी तरह से प्रभावित है। अख्तरूल इमान का कहना है कि नीतीश कुमार को इस मामले में फौरी तौर पर कार्वाई करनी चाहिए। उधर जदयू के मुस्लिम लिडरों का कहना है कि अल्पसंख्यक समाज के विकास का काम सिर्फ नीतीश कुमार ने ही किया है।

 

समाज के रहनुमा

समजा के रहनुमाओं के मुताबिक सरकार के पास अल्पसंख्यकों के विकास का मंसूबा है और इस समाज को मुख्यधारा से जोड़ने के नाम पर दर्जनों योजनाएं है। बड़ा सवाल ये है कि सरकार के अफसरों की लापरवाही के कारण जहां अल्पसंख्यकों का नुकसान होता है वहीं सरकार की बदनामी भी हो रही है। ऐसे में सरकार को चाहिए की वो अफसरों पर लगाम लगाएं और अल्पसंख्यक योजनाओं को ज़मीम पर लागु कराने की कोशिश करें।

 

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