Online Class और छात्रों की परेशानी
Online Class और छात्रों की परेशानी
लॉकडाउन और कोरोना के चलते पूरे देश का नुकसान हुआ लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किल हालात का सामना छात्रों ने किया। स्कूल बंद हो गए और छात्रों को घंटो कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल या टैब पर गुजारना पड़ा। Online Class के नाम पर शुरु किया गया नया तरीका छात्रों को कितना फायदा पहुंचाया ये शोध का विषय है लेकिन इतना साफ है कि बदली हुई तस्वीर ने जहां आर्थिक हालात का जनाजा निकाल दिया है वहीं तालीम के नाम पर ऑनलाइन क्लास एक तरह से मज़ाक बनकर रह गया है।
अभिभावक
ऑनलाइन क्लास की शुरुआत कोई आसान काम नहीं था। ना ही इस के लिए कोई तैयारी की गई और ना ही इस नये तरीके से लोग वाकिफ थे। स्कूलों के शिक्षकों के साथ साथ छात्रों ने ऑनलाइन क्लास के नाम पर अपना सेहत तक खराब कर लिया लेकिन हासिल कुछ भी नही हो सका। प्राइवेट स्कुल एंड चिलड्रेन वेलफेयर एसोसियेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद का कहना है कि छात्रों का पूरा साल बर्बाद हो गया। सवाल है कि आखिर ऑनलाइन क्लास के नाम पर ऐसी जबरदस्त आइडिया का क्या फायदा जब छात्रों की तालीम आधी अधूरी रह गई और अभिभावकों को मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा। करोड़ों अभिभावकों ने अपने बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था नही करा सके। उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वो सभी बच्चों के लिए मोबाइल या लैपटॉप खरिद सके।
इंटरनेट
Online Class पूरी तरह से इंटरनेट पर निर्भर करता है और आकड़ा बताता है कि महज़ 24 फीसदी लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा मौजुद है। हाल ही में ऑनलाइन शिक्षा को लेकर शाहीन ग्रुप ने एक्सपर्ट की एक प्रेस कॉनफ्रेंस की थी। जिसमें बताया गया कि इंटरनेट 24 फीसदी लोगों के पास है। 40 करोड़ बच्चे ऑनलाइन शिक्षा से प्रभावित हुए हैं। सरकार की तरफ से किसी तरह की कोई तैयारी नहीं की गई थी और ना ही कोई साफ पॉलिसी बनाई गई थी। नतीजे के तौर पर बच्चे, अभिभावक, शिक्षक, स्कूल और स्कूल से जुड़े लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। प्राइवेट स्कूल्स एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन के मोताबिक लाखों शिक्षक दाने-दाने के मोहताज हो गए लेकिन इस मसले पर सरकार ने गौर करना तक ज़रुरी नहीं समझा है।
स्कूल
स्कूलों के पास कोई इंतज़ाम नहीं था। पहले से जिन स्कूलों में कंप्यूटर मौजूद था वो भी यूं ही रखा रहता था। जब Online Class की बात सामने आई तो बक्से से कंप्यूटर को निकाल कर साफ किया गया। फिर ये तय हुआ कि शिक्षक अपने अपने घरों से ही क्लास लेंगे। शिक्षकों के लिए ये तरीका नया था। बस छात्रों को पढ़ाने के नाम पर टाइम पास होने लगा। उधर निजी स्कूलों के शिक्षकों को स्कूल प्रशासन ने नौकरी से निकालना शुरु कर दिया। जानकारों के मोताबिक ऑनलाइन क्लास के नाम पर जितना मुश्किल छात्रों को उठानी पड़ी है और पड़ रही है उतने ही परेशानियों का सामना शिक्षकों ने किया है।
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छात्र
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र ऑनलाइन क्लास का फायदा नही उठा सके। ज्यादातर स्कूलों में पहले से ही सुविधाओं की कमी थी। वो इस नई व्यवस्था को कबुल नहीं कर सके। छात्रों की आर्थिक हालात ने उन्हें ये मौका नही दिया कि सभी छात्र के हांथ में ऑनलाइन क्लास हासिल करने की व्यवस्था हो। मोबाइल, लैपटॉप, टैब, कंप्यूटर की जबरदस्त बिक्री हुई लेकिन मसले हल नहीं हो सके। जिस घर में एक से ज्यादा बच्चे थे वो घर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। छात्रों की तालीम पूरी तरह से प्रभावित होती रही लेकिन इस गंभीर मसले की तरफ देखना किसी ने ज़रुरी नहीं समझा।
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दलित छात्र
दलित छात्रों की मुश्किल दुसरे छात्रों से ज्यादा थी। कह सकते हैं कि 5 अप्रैल 2020 से विद्दालय के बंद हो जाने के बाद दलित छात्रों की पढ़ाई भी बंद हो गई और आज भी पूरी तरह से बंद है। ऑनलाइन क्लास नहीं कर पाने की मायूसी दलित छात्रों की आंखों में साफतौर से नज़र आती रही लेकिन दलितों की हिमायत में आवाज़ उठाने वाले लोगों ने कभी इस मसले पर कुछ भी कहना ज़रुरी नहीं समझा। उन्हें इस बात का एहसास ज़रुर हुआ होगा कि जिस बराबरी की वो बात करते हैं वो मंज़ील अभी काफी दूर है। जब बच्चों की तालीम का मसला ही अब तक हल नही हो सका है तो दूसरी कोई मांग करना बेमानी है।
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अल्पसंख्यक छात्र
निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को ज़रुर ऑनलाइन क्लास का कुछ फायदा हुआ हो लेकिन सरकारी स्कूल और मदरसों में पढ़ने वाले मुस्लिम छात्रों का पूरा साल बर्बाद हो गया। ऑनलाइन क्लास के नाम पर ना हीं सरकारी स्कूलों में कोई खास सुविधा देखी गई और ना ही मदरसों में। छात्रों का समय बीतता गया और पूरे एक साल में शिक्षा की व्यवस्था को मज़बुत नहीं किया जा सका।
सबक
लॉकडाउन और कोरोना ने जो इतिहास बदला है उससे लोगों को अब सबक मिलने लगा है। सबक कि किस तरह से शिक्षा के मामले में सुधार करने की ज़रुरत है और कैसे नए जमाने के चैलेंजे का सामना करना होगा। जानकार कहते हैं कि सरकार के लिए भी ये ज़रुरी है कि वो स्कूल के इंतज़ाम को ठीक करे और शिक्षा के मामले में मुकम्मल सुधार की कोशिश करे। शायद अब दुनिया पहले जैसी नहीं होगी तो जाहिर है शिक्षा की व्यवस्था भी पहले जैसी नही होगी। उन छात्रों का क्या कसूर है जो गांवों में रहते है जहां इटरनेट नहीं है और ना ही ऑनलाइन क्लास हासिल करने की कोई सुविधा है। बिहार की बात करें तो शिक्षा विभाग की तरफ से बड़ा बड़ा दावा किया जाता रहा है लेकिन वो दावे पानी का बुलबुला साबित होते रहे हैं। बड़ा सवाल ये है कि जो सरकार शिक्षकों की नियुक्ति का मुद्दा ही हल नहीं कर पा रही हो वो स्कूलों में कितनी सुविधा मुहैया करा सकती है ये अपने आप में गौर करने वाली बात है। शिक्षाविदों के मोताबिक कोरोना का मामला कम होता नज़र आ रहा है ऐसे में सरकार को सभी क्लास के छात्रों के लिए अब स्कूल का दरवाजा खोल देना चाहिए।
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