Police Recruitment और बिहार के मुसलमान

 

Police Recruitment और बिहार के मुसलमान

 

Police Recruitment और बिहार के मुसलमान

PATNA- फाल्गुनी देवी का नाम सुना है। ये दशरथ मांझी की बीवी का नाम है। फाल्गुनी देवी के साथ एक हादसा हुआ था, वो बीमार थीं। दावा लाने के लिए दशरथ मांझी को जिस बाज़ार में जाना था वहां पहुंचने के लिए एक पहाड़ (गहलोर पर्वत) का चक्कर लगाना पड़ता था, यानी रास्ते में एक पहाड़ था वक्त पर दवा नही मिला और उनकी मौत हो गई। तो दशरथ मांझी ने तय किया कि पहाड़ को ही काट कर रास्ता बनाएंगे। जिस दिन दशरथ मांझी ने पहाड़ पर अपना पहला हथौड़ा मारा था। उस दिन उनके साथ दो बातें हुई थी। एक तो लोगों ने उनको पागल कहा और दूसरा उनका अपने साथ किया गया एक ऐसा वादा था जिसको पूरा करने के लिए उन्होंने 22 सालों तक लगातार मेहनत की। बगैर रुके और बगैर थके और आखिरकार वो दिन आ गया जब दशरथ मांझी ने पहाड़ पर अपना आखिरी हथौड़ा मारा। पहाड़ ने रास्ता दे दिया। मांझी जीत गये। 55 किलोमीटर की दूरी 15 किलोमीटर में बदल गई। एक पिछड़े इलाके से आने वाले आदिवासी (एसटी) जाति के दशरथ मांझी का हौसला जीत गया और उसकी आवाज़ राष्ट्रीय स्तर पर सुनी गई। तो आप ने क्या समझा कि कामयाबी के रास्ते में कोई रूकावट डालता है। नहीं बिल्कुल नहीं, बल्कि खुद से लोग ये फैसला कर लेते हैं कि सरकार सोतेला सलूक कर रही है। मज़हब की आड़ में रवायतों की चादर ओढ़े आप युनिफार्म सर्विसेज़ में आने की बात पर ही इधर उधर की बात करने लगते हैं। यही कारण है कि बिहार में पुलिस की नौकरियों में मुसलमानों की तादाद ढ़ाई फीसदी (2.5) से आगे नहीं बढ़ सकी है।

 

Police Recruitment

 

 

मुद्दे की बात

पुलिस की नौकरियों में अल्पसंख्यक समाज की दिलचस्पी का नहीं होना इस समाज के बुद्दिजीवियों को हैरत में डालता रहा है। समाज की खिदमत के लिए युनिफार्म सर्विसेज़ को सबसे बेहतर रास्ता माना जाता है लेकिन इसी सर्विस में मुस्लिम समाज नहीं के बराबर हैं। मुस्लिम महिलाओं की तादाद और भी कम है। आखिर ऐसा क्यूं है। आइए इस पर गौर करते हैं। कभी मुसलमानों ने अंग्रेजी तालीम का विरोध किया था। उस वक्त हालात ऐसे थे कि विरोध करने वाले भी हक पर थे लेकिन सर सैयद अहमद खान ने आने वाले वक्त को देख लिया था और अंग्रेजी तालीम की तरफ मुसलमानों को लाने की कामयाब कोशिश की थी। और एक वक्त ऐसा आया जब लोगों ने सर सैयद अहमद खान की कोशिशों को ना सिर्फ तसलीम किया बल्कि मील का पत्थर बताया। कभी अल्पसंख्यकों ने प्रिंटिग प्रेस का विरोध किया था तो कभी उन्होंने टेलीविजन का विरोध किया लेकिन बाद में उसे अपना लिया। तो आज सोचिए कि आने वाले 20 सालों के बाद आप कहां खड़े होंगे, जब आप युनिफार्म सर्विसेज़ और Police Recruitment में दिलचस्पी नहीं लेते हैं और ना ही लड़कियों को इस नौकरी में भेजना पसंद करते हैं।

 

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हज भवन

2010 में सरकार की पहल पर पटना के हज भवन में बीपीएससी और पुलिस नौकरियों की तैयारी के लिए कोचिंग चलाने की शुरुआत की गई। हज भवन ने इस काम को काफी बेहतर तरीके से ज़मीन पर उतारने की कोशिश की है। देखते ही देखते सिर्फ लड़के ही नही बल्कि लड़कियों ने भी अपने हौसले की उड़ान भरना शुरु कर दी। 2010 में शुरु हुआ हज भवन कोचिंग का सफर दस सालों में ही अपनी पहचान छोड़ने लगा है। इस के लिए हज भवन में काफी इंतज़ाम किया गया है। शुरु में लड़के ही इसका फायदा उठा रहे थे लेकिन अब लड़कियां भी अपने घरों से निकल रही हैं बल्कि Police Recruitment और युनिफार्म सर्विसेज़ का हिस्सा बन रही हैं।

 

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अल्पसंख्यक कल्याण विभाग

अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री ज़मा खान का कहना है कि हज भवन कोचिंग एंड गाइडेंस सेल में पुलिस की नौकरियों के लिए छात्रों को काफी बेहतर तरबीयत दी जाती है। Physical Training के साथ साथ उन्हे तमाम तैयारियां कराई जाती है। नतीजे के तौर पर उनका रिजल्ट काफी अच्छा आ रहा है। उसके साथ ही बीपीएससी की तैयारी का काफी उम्दा इंतज़ाम है। इस बार 49 छात्रों की कामयाबी इस बात का सबुत है कि हज भवन कोचिंग एंड गाइडेंस सेल की तरफ से किस लेवल की तैयारी कराई गई थी। ये एक खामुश इंकलाब है जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग और इससे जुड़े तमाम ऑफिसर, ट्रेनर और हज भवन के संघर्ष का नतीजा है। उनका कहना है कि हज भवन कोचिंग एक मुफ्त रिहाइशी कोचिंग है। लाइब्रेरी, क्लासरूम, इबादतखाना की सुविधा लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग है। यहां आर्थिक एतबार से कमजोर छात्र पहुंचते हैं जो हज भवन कोचिंग का फायदा उठा कर समाज के मुख्यधारे का हिस्सा बन रहे हैं। मंत्री का का कहना है कि हर छात्र में काबिलियत होती है ज़रुरत इस बात की है कि उनको मौका दिया जाए।

 

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कामयाब छात्र

बाकायदा Police Recruitment के लिए हज भवन ने ना सिर्फ अल्पसंख्यक समाज को बेदार किया है बल्कि अल्पसंख्यक छात्रों को मौका फराहम कराया है। युनिफार्म सर्विसेज़ में छात्रों की दिलचस्पी पैदा की है और यहां से कामयाब होने वाले छात्र एवं छात्राओं ने समाज को नए सिरे से युनिफार्म सर्विसेज़ के बारे में गौर करने का माहौल बनाया है। हज भवन कोचिंग से कई ऐसी महिलाएं कामयाब हुई है जिनके गांव में आज तक कोई पुलिस नहीं बना। ऐसी छात्राएं अपने गांव का रोल मॉडल बन चुकी हैं। अगर इस बार के रिजल्ट को ही देखें तो 11 मुस्लिम महिलाएं दारोगा बनी हैं जबकी 40 महिला पुलिस कांस्टेबल में कामयाब हुई हैं। उसी तरह 44 मुस्लिम पुरुष दारोगा में कामयाब हुए हैं जबकी 182 उम्मीदवार पुलिस कांस्टेबल में कामयाब हुए हैं। इसे एक बड़ी कामयाबी मान सकते हैं लेकिन आबादी के एतबार से कामयाब उम्मीदवारों की तादाद कम है। यही कारण है कि जानकार कहते हैं कि मुस्लिम समाज को अपना नज़रिया बदलना चाहिए। युनिफार्म सर्विसेज़ में लड़के और लड़कियों को एक समान मौका मिले इस बात के लिए समाज के रहनुमाओं को गौर करने की ज़रुरत है।

 

 

समाज का नजरिया

दरअसल मुस्लिम समाज आज भी इस बात को लेकर परेशान रहता है कि उन्हे सरकारी नौकरियों में मौका नही मिलता है। सरकार की तरफ से सोलेता सलुक किया जाता है जबकी ये बात गलत है। टैलेंट को कोई दबा नहीं सकता है और ना ही मेरिट कभी नाकाम हो सकता है। नज़रिया बदलने की ज़रुरत है लेकिन बात जब महिलाओं की तालीम की होती है तो समाज का नज़रिया रवायतों के बंधन में बंधकर लड़कियों की तालीम का गला दबा देता है। याद कीजिए माज़ी की उन अज़ीम ख्वातीन के बारे में जिन्होंने तेजारत और तालीम से लेकर इल्म के मैदान में अपना परचम बुलंद किया। मुस्लिम महिलाओं की वो तारीख जब उनके हौसले पहाड़ को तौड़ रहे थे। जानकार कहते हैं कि आज अकलियती समाज को क्या हो गया है कि वो हिजाब की सियासत, मुस्लिम लीडरों की तंग नजरी और कठमुल्लों की बेतुकी बातों में आकर अपना मुस्तकबिल और अपने मज़हब की उसूलों पर भी ठीक से अमल नही कर रहे हैं। याद रखिए, मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी में अब सुबह हो चुकी है। उनका साथ दीजिए और युनिफार्म सर्विसेज़ के लिए लड़कों के साथ साथ लड़कियों को भी आगे आने का मौका दीजिए। इससे ना सिर्फ समाज का बल्कि देश का भी मुकद्दर बदलेगा।

 

 

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