Political Leadership
Political Leadership: मुसलमानों को लीडरशीप क्यों?
राजनीति की दुनिया से कट कर कोई समाज विकास के मार्ग पर तेजी से आगे नहीं बढ़ सकता है। जानकार कहते हैं की मौजूदा मुस्लिम सियासी लीडरों को इस मसले पर गौर करना चाहिए और खासतौर से उन पार्टियों को इस पर ध्यान देना चाहिए जो अल्पसंख्यकों के वोट पर सत्ता की कुर्सी हासिल करती रही है। |
कहा जाता है कि अगर कोई एक व्यक्ति चाहे तो उसका विकास किसी भी माहौल में मुमकिन हो सकता है लेकिन किसी जमात या किसी कौम का विकास राजनीति के बगैर संभव नहीं हो सकता है। बात अगर मुस्लिम समाज की करें तो उनके बीच हमेशा Political Leadership का मसला सुर्खियों में रहा है। ऐसा नहीं है कि मुस्लिम समाज में लीडर नहीं है। सियासी लीडर तो बेशुमार है लेकिन कोई कायद, नेता या नेतृत्व करने वाला नहीं है। या ऐसे कहें कि मुस्लिम समाज का नेतृत्व मुस्लिम सियासी लीडरों के पास नहीं है। अकलियती समाज का नेतृत्व या तो धार्मिक संगठनों के पास है या फिर वो सियासी तौर पर अपना नेता अलग-अलग राज्यों में सेक्युलर कहे जाने वाली पार्टियों के प्रमुख को मानते हैं। नतीजे के तौर पर उनके बुनियादी सवाल को हल करने की बात तो खूब की जाती है लेकिन कोई सियासी लीडर प्रमुखता से उनके मसले को हल करने की कोशिश नहीं करता है। वो मायूस होते है लेकिन हर बार वो अपना नेता सेक्युलर जमात के सुप्रिमों को ही मानते है। उनके मसले की तरह उनके सवाल भी बने रह जाते हैं, कोई उनका नेता नहीं है जो बुनियादी सवालों पर अपनी पार्टी लाइन से अलग होकर उनके साथ खड़ा रहता हो।
सियासी भंवर में उलझा मुसलमान
मौजूदा मुस्लिम लीडरों को अपनी पार्टी की कशीदा खानी से फुर्सत नहीं मिलती है। जाहिर है उन्हें अपना सियासी कैरियर देखना होता है। अगर वो पार्टी लाइन से अलग हो कर गरीब, मजदूर, किसान और खासतौर से अल्पसंख्यकों का सवाल उठाते हैं तो उन्हें अकसर अपना सियासी कैरियर दाव पर लगता दिखाई देता है और मजे की बात ये भी है कि अल्पसंख्यक समाज उनकी मदद करने के बजाए उनका साथ छोड़ देता है। नतीजे के तौर पर मुस्लिम लीडर अपना कैरियर अपनी पार्टी की हित में और पार्टी लाइन पर ही बात करने में देखते रहे हैं और पार्टी के लिए ही अपनी पूरी ताकत लगाते हैं। समाज यहां पीछे छूट जाता है और Political Leadership का मसला बरकरार रह जाता है।
अधूरा रह जाता है काम
सियासी लीडरशीप के आभाव में ही अल्पसंख्यक समाज का काम अधूरा रह जाता है। कोई फलोअप करने वाला उनके समाज का अपना कोई नेता नहीं है, कि वो सरकार से पूछ सके या उनके सवाल पर खुद का फायदा छोड़ कर समाज के लिए संघर्ष कर सके। आज उनके तालीम, रोजगार, सेहत, सरकारी योजनाएं, उनके मौलिक अधिकार पर बात करने वाला कोई मुस्लिम लीडर मौजूद नहीं है। ये बातें अलग-अलग सियासी पार्टियों के लीडर जरूर सामने लाने की कोशिश करते रहते हैं लेकिन आज हर राजनीतिक पार्टियों के नेता अपने-अपने समाज के मसले पर न सिर्फ बात करता है बल्कि ईमानदारी से उसे हल कराने की कोशिश भी करता है लेकिन ये बात मुस्लिम लीडरों में कम देखी जाती है।
असदुद्दीन ओवैसी
सियासी लीडरशीप का मसला कभी उतना गंभीर नहीं था जितना आज के समय में है। राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो मुसलमानों की आवाज उठाने वाले कई सियासी लीडर दिखाई देते हैं जिसमें एक नाम काफी मशहूर है और वो नाम है बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी का। राज्य स्तर पर देखें तो ज्यादातर राज्यों में मुस्लिम समाज का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है।
बिहार में मुस्लिम लीडरशीप का सवाल
बिहार में सियासी लीडरशीप का मसला आज और भी गंभीर हो गया है। दो दशक पहले तक बिहार में कई मुस्लिम लीडर काफी एक्टिव रहा करते थे तब उनकी बात भी सुनी जाती थी लेकिन आज हर पार्टियों में मुस्लिम लीडर मौजूद तो है लेकिन उनकी बात नक्कारखाने में तूती की आवाज से ज्यादा कुछ भी नहीं है। उनमें से अकसर को इससे भी मतलब नहीं है कि अल्पसंख्यक समाज के मसले कैसे हल होंगे बल्कि ज्यादातर लोगों को अल्पसंख्यकों के समस्याओं की सही जानकारी भी नहीं है। जब खुद सियासी पार्टियों के मुस्लिम लीडरों को अपने समाज की सही सुरते हाल मालूम नहीं है तो वो अपनी पार्टी के सुप्रिमों को अकलियतों के मसले क्या बता पाते होंगे। हालांकि जानकारों के मुताबिक अब ऐसे मुस्लिम नेता कम हैं जिन से खुद उनके पार्टी का सुप्रिमों मिलना पसंद करता है या फिर मिलने के लिए मजबूर होता है। बड़ा सवाल ये भी है कि हमेशा से ही सियासी लीडरशीप के मसले से अल्पसंख्यक समाज जुझता रहा है। सियासी नुमाइंदगी देने के सवाल पर अलग-अलग सियासी पार्टियां उनका वोट लेती रही है लेकिन सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद अल्पसंख्यकों के मसले को बिल्कुल फरामोश कर दिया जाता है। सियासी चालबाजियां ऐसी है कि सिर्फ बीजेपी का खौफ दिखा कर अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज का वोट लेना काफी माना जाता है।
नवजवानों का नजरिया
आज मुस्लिम युवा इन तमाम बातों से दूर अपने मसले को खुद हल करना चाहते हैं लेकिन राजनीति की दुनिया से कट कर कोई समाज विकास के मार्ग पर तेजी से आगे नहीं बढ़ सकता है। जानकार कहते हैं की मौजूदा मुस्लिम सियासी लीडरों को इस मसले पर गौर करना चाहिए और खासतौर से उन पार्टियों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है जो अल्पसंख्यकों के वोट पर सियासत कर सत्ता की कुर्सी हासिल करती रही है।
ये भी पढ़ें-