Site icon HoldStory I हिन्दी

Private School Association

Private School Association

 

Private School Association

 

 

बिहार के Private School Association ने लिया फैसला अगले सेशन से आरटीई के तहत नहीं करेंगे दाखिला

 

PATNA- प्राइवेट स्कूल एंड चिलड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि बिहार सरकार पर राज्य के निजी स्कूलों का करोड़ों रुपया RTE का बाकी है लेकिन इस सिलसिले में सरकार की तरफ से किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। प्राइवेट स्कूल एंड चिलड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन ने सरकार को खबरदार किया है कि अगर मार्च 2022 तक निजी स्कूलों के बकाया रकम को अदा नहीं किया जाता है तो अगले सेशन से Private School Association के कहने पर आरटीई के तहत निजी स्कूलों में दाखिला नहीं होगा।

 

सैयद शमायल अहमद, राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्राइवेट स्कूल्स एंड चिलड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन।

 

 

आरटीई के तहत निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं हज़ारों छात्र

 

प्राइवेट स्कूल एंड चिलड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन के मुताबिक केंद्र सरकार ने 2009 में आरटीई का कानून बनाया था। बिहार में 2011 से ये कानून लागू है जिसके तहत आर्थिक एतबार से कमजोर 25 फीसदी छात्रों का दाखिला स्कूलों को करना होता है। Private School Association का कहना है कि राज्य के निजी स्कूलों में हज़ारों छात्र इस योजना के तहत पढ़ाई कर रहे हैं। 25 फीसदी छात्रों की पढ़ाई का खर्च सरकार को उठाना है लेकिन सरकार की तरफ से निजी स्कूलों को पैसा नहीं दिया जा रहा है। मजबूर हो कर Private School Association ने एलान किया है कि अगर पैसा नहीं मिला तो अगले सेशन से ऐसे छात्रों का निजी स्कूलों में दाखिला नहीं होगा।

 

Also Read – अल्पसंख्यक लोन बिहार 2021

 

कोरोना महामारी में भी सरकार ने नहीं की निजी स्कूलों की कोई मदद

 

प्राइवेट स्कूल एंड चिलड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन ने ये भी कहा है कि कोरोना जैसे आपदा काल में केंद्र सरकार की तरफ से जारी की गई 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में भी निजी स्कूलों का कहीं जिक्र नहीं था। हालांकि केंद्र सरकार राज्य सरकार को इस मद में पैसा देती है लेकिन राज्य सरकार की तरफ से निजी स्कूलों को वो रकम नहीं दी जा रही है। एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद का कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन में निजी स्कूलों के सैकड़ों टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ को काफी मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा और दर्जनों ऐसे टीचर और नॉन टीचिंग स्टाफ थे जिनका इलाज के आभाव में मोत हो गया। अगर सरकार की तरफ से स्कूलों का बकाया रकम ही दे दिया जाता तो स्कूलों में काम करने वाले लोग मुश्किल हालात का सामना करने से बच जाते। लेकिन सरकार को उनकी कोई चिंता नहीं रही। नतीजे के तौर पर न सिर्फ स्कूलों की माली हालत खराब हो गई है बल्कि सैकड़ों लोगों को अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ी है।

 

Also Read – Imarat e Shariah

 

शिक्षा के क्षेत्र में निजी स्कूलों का योगदान

 

Private School Association का कहना है कि निजी स्कूलों के लोग अब आर-पार की लड़ाई लड़ने का मन बना रहे हैं। प्राइवेट स्कूल एंड चिलड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष का कहना है कि एक तरफ निजी स्कूलों के जरिए राज्य की शैक्षणिक व्यवस्था को पटरी पर लाने में सरकार को मदद मिलती है और दूसरी तरफ उसी संस्थान के प्रति सरकार का रवैया अफसोसनाक रहता है। जाहिर है ये एक गंभीर विषय है जिस पर Private School Association गौर कर रहा है।

 

Also Read – Maulana Mazharul Haque University

 

आरटीई का बकाया पैसा नहीं मिला तो अगले सेशन से ऐसे छात्रों का नहीं होगा दाखिला

 

प्राइवेट स्कूल एंड चिलड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष ने ये भी कहा कि निजी स्कूलों के बेहतर प्रदर्शन से किसी को इनकार नहीं है। यही वजह है कि सब लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में तालीम हासिल करें लेकिन जब स्कूलों को सुविधा देने की बात होती है तो सरकार खामोश हो जाती है। शमायल अहमद का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान भी ना ही स्कूलों का बिजली बिल और किसी तरह का कोई टैक्स माफ किया गया और ना ही आरटीई का बाकी पैसा सरकार ने दिया। अगर आरटीई का ही पैसा स्कूलों को अभी भी मिल जाए तो स्कूलों की माली हालत ठीक हो सकती है। यही कारण है कि सरकार को सचेत किया गया है कि अगर मार्च 2022 तक आरटीई का बाकी पैसा सरकार ने नहीं दिया तो अगले सेशन से आरटीई के अंतर्गत आने वाले गरीब छात्रों का दाखिला निजी स्कूलों में नहीं होगा।

 

पैसा वाले लोगों के बच्चे भी निजी स्कूलों में बिना पैसा के पढ़ रहे हैं

 

Private School Association का कहना है कि ऐसा नहीं है कि स्कूल गरीब छात्रों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं। ज्यादातर ऐसे लोग हैं जो आर्थिक एतबार से बहुत संपन्न नहीं हैं लेकिन वो पैसा दे कर स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इससे स्कूलों की माली हालत भी खराब नहीं होती है और छात्रों की पढ़ाई भी होती है। आरटीई के तहत गरीब छात्रों को जरूर रियायत मिलनी चाहिए लेकिन अच्छे खासे पैसे वाले लोगों के बच्चे भी आरटीई के अंतर्गत दाखिला लेते हैं और वो स्कूलों को फीस नहीं देते हैं। 25 फीसदी छात्रों को आरटीई के अंतर्गत सरकार स्कूलों में दाखिला कराती है जिसका खर्च सरकार को देना है लेकिन सरकार वो पैसा नहीं देती है। ऐसे में स्कूलों की माली हालत लगातार खराब हो रही है। यही सिलसिला चलता रहा तो स्कूल बंद होने के कागार पर पहुंच जाएंगे और उसका सीधा असर राज्य के शिक्षा पर पड़ेगा। जो निजी स्कूलों के लोग नहीं चाहते हैं।

 

 

 

 

Exit mobile version