Site icon HoldStory I हिन्दी

Quality Education In Madarsa

Quality Education In Madarsa

 

मदरसों के छात्र हर महीने कमा सकते हैं लाखों रुपया, कैसे ? पढ़ें यह पूरा आर्टिकल Quality Education

 

 

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (Quality Education)

PATNA- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (Quality Education) हर बच्चे का अधिकार होता है। शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के नाम पर लगातार कार्यक्रम होते रहे हैं। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने हमेशा इस बात की कोशिश की है कि शैक्षणिक संस्थाओं में शिक्षा का स्तर ठीक हो ताकि बच्चों का भविष्य रौशन हो सके। उनके जीवन स्तर में बदलाव आ सके। इस सिलसिले में की गई उन कोशिशों का फायदा भी हुआ है लेकिन उतना नहीं जितना होना चाहिए था। यही कारण है कि बेरोज़गार नौजवानों की फेहरिस्त में पढ़े लिखे लोगों की तादाद ज्यादा होती है।

 

 

 

शैक्षणिक संस्थान

इस आर्टिकल में हम बात मदरसों की करेंगे। मदरसों में Quality Education की बात हमेशा की जाती है। मदरसों का मामला जहां सरकारी गलियारों में सुर्खियां बनता रहा है वहीं समाज के बीच मदरसों की तालीम को लेकर बहस होती रही है। सियासी पार्टियां मदरसों पर सियासत कर अपना उल्लू सीधा करती है वहीं मदरसों के मुद्दे पर लगातार बात करने के बाद भी समाज ये महसूस करता है कि जिस Quality Education की तस्वीर वो मदरसों में देखना चाहते हैं मदरसे उससे कोसों दूर हैं।

 

Also Read – Akhtarul Iman AIMIM

 

मदरसा बोर्ड

बिहार में बड़ी संख्या में निजी मदरसे हैं लेकिन सरकार से स्वीकृत मदरसों की संख्या 1,942 है। ये मदरसे राज्य के मदरसा एजुकेशन बोर्ड के मातहत काम करते हैं। मदरसा बोर्ड मदरसों को लेकर कितना गंभीर रहा है ये बताने की ज़रुरत नहीं है। सरकार मदरसों को अनुदान देती है और अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेती है। सरकार को आप जवाबदेह मान सकते हैं लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी खुद मदरसों की है। उधर ये भी सच्च है कि अगर सरकार का तेवर कभी मदरसों की शिक्षा पर सख्त हुआ भी तो मदरसों के लोग फौरन उस बात को मदरसों में दखल देना बताते हैं। संवीधान की धारा 29 और 30 की दुहाई देने लगते हैं। ज़ाहिर है वोट बैंक की सियासत में इस बात की कहां इजाजत होती है कि किसी संस्था को सही रास्ते पर लाने के लिए ठोस कार्वाई की जाए।

 

Also Read – Imarat Shariah और मुसलमान

 

मदरसों का सिलेबस

बिहार के मदरसों का सिलेबस स्कूलों के सिलेबस जैसा है। हालांकि मदरसों के पाठ्यक्रम में कुछ विषय और ज्यादा पढ़ाई जाती है। मदरसों की तालीम उर्दू भाषा में होती है। बिहार मदरसा एजुकेशन बोर्ड की तरफ से ये दावा किया जाता रहा है कि हर साल मदरसों से 40 से 50 हज़ार बच्चे अपनी तालीम मुकम्मल कर के निकलते हैं। जानकार कहते हैं की आर्थिक एतबार से कमज़ोर इतनी बड़ी संख्या में छात्रों को पढ़ाना मदरसों के लिए कमाल की बात हो सकती है लेकिन मदरसों में Quality Education नहीं होने से यहां से पास करने वाले छात्रों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। खासतौर से तब जब वो नौकरी की तलाश करने लगते हैं।

 

Also Read – Second Official Language उर्दू

 

पढ़ाई का माहौल

जानकारों के मुताबिक मदरसों के पाठ्यक्रम पर कोई सवाल नहीं है। लेकिन किसी मदरसें में पढ़ाई का पहले जैसा माहौल नहीं है। शिक्षाविदों का कहना है कि मदरसों में बड़ी संख्या में बच्चे तालीम हासिल करते थे जिसमें अब कमी आई है। उनके मुताबिक अभी भी बच्चों की बड़ी संख्या मदरसों में है। शिक्षा के सिलसिले में मदरसों के योगदान से इंकार नहीं किया जा सकता है ज़रुरत इस बात की है कि मदरसों में पढ़ाई का माहौल बनाया जाए साथ ही नए जमाने की ज़रुरतों के मुताबिक वहां तालीम की व्यवस्था की जाए ताकि छात्र जब मदरसे से पढ़ कर बाहर निकले तो उन्हें भी जिंदगी गुजारने का बेहतर मौका मयस्सर हो।

 

मदरसों का उच्च शिक्षा

बिहार के जिन मदरसों में आलिम और फाजिल (बीए और एमए) की तालीम दी जा रही है उन मदरसों में बीए और एमए के छात्रों को पढ़ाने के लिए सरकार ने अब तक शिक्षकों के पोस्ट की स्वीकृति ही नहीं दी है, नियुक्ति तो दूर की बात है। मदरसों के मामले में बडी-बड़ी बात करने वाली सरकार के सामने मदरसों की उच्च शिक्षा का मसला कोई मसला नहीं है। कई हज़ार छात्र बीए और एमए के मदरसों से तालीम हासिल कर रहे हैं लेकिन उन को पढ़ाने के नाम पर सरकार बिल्कुल गंभीर नहीं है। उधर आलिम और फाजिल (बीए और एमए) के छात्रों को मौलाना मज़हरूल हक विश्वविद्यालय परीक्षा लेती और उन्हें डिग्री देती है। जानकार कहते हैं कि मदरसों में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों के साथ सरकार मज़ाक कर रही है।

 

मदरसों की कमेटी

खास बात ये है कि मदरसों को चलाने के लिए हर मदरसे की अपनी एक अलग कमेटी होती है। वही कमेटी मदरसों की तालीम और मदरसों में शिक्षक नियुक्ति की रूपरेखा तैयार करती है। मदरसों में शिक्षकों की बहाली को मदरसा बोर्ड मंज़ूर करता है और सरकार उन्हें वेतन देती है। तो साफ है कि मदरसों को चलाने वाली कमेटी के पास सबसे ज्यादा ताकत है कि वो चाहे तो मदरसा में बेहतर शैक्षणिक व्यवस्था लागू करे या फिर मदरसों की तालीम को ताक पर रख कर अपना उल्लू सीधा करता रहे। बिहार में ज्यादातर ऐसा ही हो रहा है मदरसों की कमेटी मदरसों की शिक्षा के मामले में बिल्कुल गंभीर नहीं है। छात्रों का पूरा जीवन चौपट हा जाता है लेकिन मदरसों की कमेटी पर उसका कोई असर नहीं पड़ता है।

 

छात्र

मदरसों में Quality Education लाने के लिए जानकारों ने कई बार सरकार के साथ-साथ मदरसा बोर्ड और मदरसों की कमेटी से अपील की है। उनका कहना है कि मदरसों के सिलेबस को ठीक मान भी लें तो ये कहना गैर मुनासिब नहीं है कि उसे भी ठीक से पढ़ाया नहीं जा रहा है साथ ही आधुनिक युग की ज़रुरतों को पूरा करने के नाम पर मदरसों में कुछ भी नहीं है। दीनी तालीम की ज़रुरत ज़रुर पूरी होती है लेकिन वो बच्चे जो कुछ दूसरा करना चाहते हैं उन्हें ज्यादा मौका नहीं मिल रहा है और ये परेशानी की बात है।

 

भाषा

ग्लोबलाइजेशन की इस दुनिया में हर शख्स अपनी भाषा को लेकर काफी गंभीर हुआ है। दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियां स्थानीय भाषा में लोगों तक पहुंचने की कोशिशों में जुटी है। व्यापार को बढ़ाने के लिए स्थानीय भाषा में लोगों तक पहुंचने की रणनीति दुनिया की बड़ी बड़ी मल्टीनेश्नल कंपनियां बना रही है। नतीते के तौर पर नौकरी का एक बड़ा ज़रिया भाषा बन रहा है। मदरसों में उर्दू के साथ-साथ अरबी भी पढ़ाई जाती है। अंग्रेजी की तालीम का भी इंतज़ाम है। अगर मदरसों के छात्रों को Quality Education के नाम पर कम से कम अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और अरबी की बेहतर शिक्षा मिल जाए तो वो इस भाषा से लाखों रुपए महीना कमा सकते हैं।

 

हर महीने कमा सकते हैं लाखों रुपए

 

 

 

 

Also Read – Maulana Mazharul Haque University Admission और मदरसा

 

Exit mobile version