This article on relationship with family and others in Hindi
घर के रिश्तों में बढ़ रही है दूरी।
(Relationship with family and others in Hindi) किसी ने सच कहा है कि हर गुजरा हुआ वक्त आने वाले वक्त से बेहतर होता है। गुजरा हुआ वक्त की खुबी ये है की वो चाहे जैसा भी था गुजर गया और आने वाला वक्त का मामला ये है कि वो कैसा होगा किसी को नही मालूम। एक वक्त था जब गांव में किसी के घर मेहमान आता था तो उसका स्वागत गांव के सभी लोग करने उसके घर चले जाते थे। मेहमान के वापस जाने पर पुरा मोहल्ला उनकों विदा करने जाता था। तकनीकी बदलाव और रोज़गार हासिल करने की दौड़ने समाज के ताने बाने को ही बदल कर रख दिया है। अब घर के लोग भी मेहमानों जैसे बात करते हैं और रिश्तेदारों जैसे मुलाकात।
गांव से शहर में रोज़गार की तलाश में आने वाले लोग।
अब स्कुल जाने वाला बच्चा अपने-अपने फ्लैट और घरों में एक तरह से बंद हो कर रह गया है। सुरक्षा के नज़रिए से घरों तक महदूद रखने की परंपरा ठीक भी है लेकिन कंपोज़िट कल्चर और मिली जुली संस्कृति में बड़े होने वाले बच्चों के पास तहज़ीबी विरासत की निशानी मौजुद रहती थी और सही मायनों में उनके पास भारत का तहज़ीब हुआ करता था। आज की तहजीब नई दुनिया के तकाज़ों को तो पुरा करती है लेकिन जज्बात और दिलों में खुशियों की इमारत बनाने का मौका नही देती है।
अकेला होता समाज।
अकेला होता समाज अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगा है। शायत वो बड़ा हो भी गया है उसके हांथ में मोबाइल है वो इंटरनेट के साथ पूरी दुनिया से जुड़ा है। पल झपकते सारी जानकारियां इकठ्ठा कर लेता है। मोबाइल पर ही नई चीज़ें सीखता है। मोबाइल ही उसका रिश्तेदार है और मोबाइल ही दादी और दादा, नानी और नाना। कभी उंगलियां मोबाइल पर जुंबिश करना भुल जाती है तो सर उठा कर आसपास देख लेता है और मां-बाप को देख कर मुस्कुरा लेता है। ये नया समाज है। इस समाज को सियासत से कोई मतलब नही है और ना ही समाज की पुरानी रवायतों से।
भुलते रिश्ते।
अकेला होता समाज भुलने लगा है की रिश्ते अहम होते हैं। उनसे मुलाकात और बात भी अहम होती है। व्हाट्सएप और मोबाइल के ज़रिए बात करने को ही वो अपनी सारी जिम्मेदारियों को पुरा कर लेने के बराबर समझता है। नौकरी को बचाने की फिक्र और पैसा बनाने की चिंता, अपनी ज़िंदगी को और भी आरामदायक बनाने की जोड़ तोड़ ने मां और बाप को भी भुलने पर मजबुर कर दिया है। ये नया समाज है जिसके अपने नये तकाज़े है, उसको पुरा करने का अपना एक अलग अंदाज़ है। वो तो गांव से नौकरी करने शहर आया था उसे कब मालुम था कि वो शहर की तहजीब में अपने बच्चों की परवरिश का अंदाज़ भुल जाएगा। अब बच्चों की दुनिया नई हो गई है।
नया वक्त काफी कुछ कहता है।
नई दुनिया बुरी नही है लेकिन दुरियां बेचैन करती है। मोबाइल, कंप्यूटर, इंटरनेट से नये रिश्ते बन रहे हैं और पुराने रिश्तों को भी बनाने की कोशिश हो रही है लेकिन रिश्तें वक्त मांगते है और वक्त नही है। तभी तो जानकार कहने लगे हैं कि एक ही छत के नीचे रहने वाले पति और पत्नी की दुनिया भी अब पुरी तरह से बदल गई है। एक छत के नीचे रहने वाले लोग भी अपनी अपनी दुनिया में जीते हैं बल्कि अजनबियों जैसे सलुक करते है। बच्चों के जीने का अंदाज़ तो पहले से ही बदल गया है। ऐसे में नया वक्त, रिश्तों के लिए वक्त मांगता है। वक्त को रिश्तों पर खर्च करने की बात कहता है। ये आसान नही है लेकिन ऐसा करने से जिंदगी ज़रुर आसान हो सकती है।
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