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Second Official Language उर्दू

 

बिहार की Second Official Language उर्दू

 

Part- 3

Second Official Language उर्दू

PATNA- पिछले दो Articles में ये बात साफ हो गई है कि बिहार की Second Official Language उर्दू को किस तरह के challenges का सामना है। एक तरफ सरकार को उर्दू के लिए जो कुछ करना चाहिए था वो नही किया गया और दुसरी तरफ उर्दू बोलने वाले लोग सिर्फ सरकार के भरोसे उर्दू की तरक्की का ख्वाब देखते रहे। सरकार की तरफ से उर्दू के नाम पर कायम की गई संस्थाएं उर्दू के विकास को लेकर बहुत ज्यादा संजीदा नहीं हो पाई और सरकार ने भी उन संस्थाओं को अपनी मर्ज़ी से काम करने नही दिया बल्कि ज्यादातर उर्दू की सरकारी संस्थाएं नाम की रह गई है।

 

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उर्दू पर सियासत

कभी उर्दू देश के हर नागरिक की भाषा समझी जाती थी, हालात ने ऐसा करवट लिया कि उर्दू को अल्पसंख्यक वर्ग से जोड़ कर उसका दायरा महदूद कर दिया गया। ये मान लिया गया कि Second Official Language उर्दू एक खास वर्ग की भाषा है। जब से अल्पसंख्यक वर्ग से इस भाषा को जोड़ा गया तभी से उर्दू सियासी गलियारों की सुर्खियां बनने लगी। खासतौर से बिहार के हर चुनाव में उर्दू पर सियासत एक आम बात हो गई। वजह साफ है कि एक बड़ी आबादी की ज़बान उर्दू है और सियासत इस भाषा की तरक्की का दावा कर अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश करती रही है। सरकार के वादे और दावे Second Official Language उर्दू के विकास की कभी मंज़िल साबित नही हो सकी बल्कि इसी बहाने उर्दू आबादी के वोटों को हासिल करने की रणनीति ज़रूर बनाई जाती रही।

 

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क्या कहते हैं सियासी नेता

अख्तरूल इमान– बिहार की Second Official Language उर्दू के मामले पर एमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक अख्तरूल इमान का कहना है कि उर्दू हिन्दुस्तान की जबान है लेकिन कहीं ना कहीं अल्पसंख्यक समुदाय का उस भाषा से लगाव होने के सबब फिरका परस्त जेहन के लोग इस जबान को दबाना चाहते है। सरकारी स्तर पर उर्दू को जो हैसियत मिलनी चाहिए थी वो नही मिल सकी है। सरकार की लापरवाही ये है की स्कूलों के सिलेबस से उर्दू को हटाने की साजिश की जारही है। उर्दू टीईटी शिक्षकों की बहाली नही हो रही है। उर्दू संगठनों का गठन नही किया जा रहा है। सरकार उर्दू दोस्ती का सबुत पेश नही कर पा रही है। ऐसे में उर्दू आबादी को अपनी ग़फलत की चादर हटानी चाहिए। उर्दू मादरी ज़बान है और मादरी जबान से नई नस्ल को महरूम रखना अपनी नस्लों को अपने माजी की विरासत से महरूम रखने के बराबर है।

 

Akhtarul Iman MLA and Bihar State president, All India Majlis-e-Ittehadul Muslimeen.

 

जेडीयू नेता गुलाम रसूल बलियावी– जेडीयू नेता मौलाना गुलाम रसूल बलियावी का कहना है की सरकार की तरफ से उर्दू के मामले पर काफी काम किया गया है। मौलाना गुलाम रसूल बलियावी के मोताबिक स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति का काम नीतीश कुमार ने ही किया है और आगे भी नीतीश कुमार ही उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति और उर्दू टीईटी उम्मीदवारों की बहाली का रास्ता हमवार कराएगें। उर्दू टीईटी उम्मीदवारों की वजह से उनका मसला उलझा रहा है लेकिन अब उनके मसले को हल करने के लिए सरकार की तरफ से जल्द कदम उठाया जाएगा। मौलाना बलियावी कहते हैं कि जो संस्थाएं उर्दू पर काम कर रही है उनकी तरक्की के लिए भी सरकार बहुत संजिदा है।

 

Ghulam Rasool Balyawi MLC, JDU

 

जानकारों की राय

 

उर्दू के मारूफ अदीब और टीपीएस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ अबु बकर रिजवी का कहना है कि उर्दू को दुसरी सरकारी जबान बनाए जाने के बाद शुरु में इस भाषा के विकास के लिए काम हुआ लेकिन आहिस्ता आहिस्ता उर्दू को सरकार नज़र अंदाज़ करने लगी। हालत ये है कि सरकार ने कभी उर्दू के सिलसिले में कुछ अच्छा करना चाहा तो वो योजना लालफीताशाही की भेंट चढ़ गई। नतिजे के तौर पर उर्दू की संस्थाओं का विकास उस पैमाने पर नही हो सका साथ ही उर्दू की पढ़ाई का माकुल इंतज़ाम नही हुआ। दुसरी तरफ उर्दू आबादी भी उर्दू को लेकर ग़फलत की शिकार बनी रही। डॉ. रिजवी का कहना है कि कई छोटी छोटी भाषाओं का वजूद खतरे में है। उर्दू पूरे मुल्क में बोली जाती है ऐसे में इस भाषा को लेकर लोगों को संजिदा होना चाहिए।

 

Dr Abu Bakar Rizvi, Prof. TPS College, Patna

 

समाज का उच्च वर्ग

भाषा भाषा को खा तो नही रही है लेकिन ये बात भी सच्च है कि अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में उर्दू पढ़ने का कोई इंतज़ाम नही है। अंग्रेजी भाषा जानने वाले छात्रों के पास अवसर ज्यादा है लेकिन मादरी जबान होने के नाते उर्दू का जानना ज़रुरी है। Second Official Language उर्दू गंगा जमुनी तहज़ीब की विरासत है। उर्दू भाषा में इल्म का खज़ाना है अगर उर्दू पढ़ने वाले और उर्दू जानने वाले लोग नही होगें तो ज़ाहिर है उन किताबों को कौन पढ़ेगा और वो खज़ाना एक तरह से खत्म हो जाएगा। यही वजह है कि जानकार Second Official Language उर्दू को हर कीमत पर पढ़ने और इस भाषा के विकास का रास्ता बनाने की मांग सरकार के साथ साथ आम लोगों से करते हैं। किसी ने सच्च कहा है कि इल्म चाहे जहां से हासिल हो उसे हासिल करना चाहिए। भाषा को कैद करना एक तरह से इल्म को कैद करने के बराबर है। जानकारों के मोताबिक भाषा आज़ादी के साथ विकास करे सरकार को इस पर ज़रुर गौर करना चाहिए।

 

 

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