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Second Official Language of Bihar

second official language of bihar

 

Second Official Language of Bihar

part- 1

बिहार की दुसरी सरकारी ज़बान उर्दू

(Second Official Language of Bihar) बिहार में तीन दशक पहले उर्दू को द्वितीय राज्य भाषा का दर्जा दिया गया था। उर्दू बोलने वाले लोगों को उम्मीद थी की द्वितीय राज्य भाषा बनने के बाद सुबे में उर्दू का विकास होगा साथ ही उर्दू पढ़ने वाले छात्रों को रोज़गार का मौका मिलेगा। लेकिन तीन दशक बाद भी उर्दू को वो मोकाम हासिल नही हो सका नतिजे के तौर पर आज भी राज्य की उर्दू आबादी उर्दू को लेकर ना सिर्फ चिंतीत है बल्कि उर्दू को लागु कराने के लिए जद्दोजहद करने पर मजबुर है। हालांकी द्वितीय राज्य भाषा का दर्जा मिलने के बाद राज्य में उर्दू को कई तरह की सुविधाएं हासिल हुई और ये समझा जाने लगा कि सरकारी स्तर पर भी उर्दू का विकास होगा लेकिन उर्दू के जानकार कहते है कि सरकार की तरफ से उर्दू के लिए वो सब कुछ नही किया गया जिसकों ध्यान में रख कर उर्दू भाषा को राज्य की द्वितीय राज्य भाषा बनाया गया था।

 

क्या कहते है उर्दू के जानकार

उर्दू के प्रसिद्ध लेखक प्रो. अलीमुल्लाह हाली का कहना है कि शुरु में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उर्दू दोस्ती की बात करते थे और ऐसा लग रहा था कि राज्य में उर्दू को उसका हक मिलेगा लेकिन आहिस्ता आहिस्ता मुख्यमंत्री ने उर्दू भाषा के मसले को पूरी तरह से फरामुश कर दिया। अलीमुल्लाह हाली का कहना है कि उर्दू अकादमी का तीन सालों से गठन नही हुआ है। उर्दू परामर्शदाता समिति को गठन नही किया जा रहा है, स्कूलों में उर्दू की जगहे खाली है लेकिन उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति नही की जा रही है। उर्दू स्कूलों को हिंदी युनिटों में बदला जा रहा है। प्रो. हाली का कहना है कि हैरत की बात ये है कि कैसे नीतीश कुमार मुतमईन है वो उर्दू वालों को करीब भी रखना चाहते है और उर्दू वालों का काम भी नही कर रहे हैं। नतीजे के तौर पर उर्दू को हक नही मिल रहा है। ताज्जुब ये है कि उर्दू वालों को इतनी भी हिम्मत नही है कि मुख्यमंत्री को कहे की उर्दू अकादमी का गठन करे। मौजुदा हुकूमत में शामील मुस्लिम वज़ीर भी इस मामले में अपना मुंह खोलने को तैयार नही हैं। ये बिल्कुल साफ है कि अगर उर्दू का काम नही हुआ तो मुसलमान उनके साथ नही रहेगें। (Second Official Language of Bihar)

 

Prof. Alimullah Hali

 

हाल ही में साहित्य अकादमी पुरस्कार हासिल करने वाले उर्दू के जाने-माने लेखक हुसैन उल हक का कहना है कि कोई भी ज़बान अपने पढ़ने वालों से जिंदा रहती है। अभी हालत ये है कि उर्दू वाले उर्दू की दुहाई तो देते है लेकिन उनके घरों में उर्दू का माहौल नही है। ज़रुरत इस बात की है कि उर्दू पढ़ने का घरों में इंतज़ाम किया जाए। घर के सरपरस्त अपने बच्चों को उर्दू पढ़ने के लिए रागीब करे। दुसरी तरफ सरकार के स्तर पर अगर बात करे तो सरकार उर्दू के नाम पर बनाए गये संस्थाओं को रकम देती है अब ये उनकी जिम्मेदारी है कि वो उर्दू के विकास के लिए काम करे। बेहतर ये होगा की अंजुमन तरक्की उर्दू, उर्दू अकादमी और उर्दू डायरेक्टोरेट मिल कर उर्दू के नाम पर प्रोग्राम करे और उसमे उर्दू के विकास को लेकर एक रणनीति बनाई जाए। हुसैन उल हक का कहना है कि हालत तो ये है कि सरकार के अहम विभाग, एदारे और स्टेशनों तक का नाम उर्दू में ठीक से नही लिखा गया है। उर्दू दुसरी सरकारी भाषा है तो इस मामले में संजिदा कोशिश भी ज़रुरी है।

 

जेडीयू नेता और उर्दू के मारूफ नाम प्रो. असलम आज़ाद का कहना है कि उर्दू के मामले में नीतीश कुमार की नियत और नीति पर शक नही किया जा सकता है, हां ये ज़रुर है कि सरकार में काम करने वाले अफसरों का एक तबका उर्दू के खिलाफ साजिश करता है। वो उर्दू के दुश्मन है और सरकार के भी दुश्मन है। प्रो. आजाद के मोताबिक जिन उर्दू संस्थाओं का गठन नही हुआ है उसे जल्द गठन करने की कार्यवाई की जारही है।

 

Prof. Aslam Azad

 

समस्या कहा है

दरअसल उर्दू के विकास के नाम पर सरकार के कई एदारे काम करते हैं जैसे…
⦁ उर्दू अकादमी
⦁ उर्दू परामर्शदाता समिति
⦁ उर्दू निदेशालय

 

उर्दू अकादमी और उर्दू परामर्शदाता समिति

उर्दू अकादमी का तीन सालों से गठन नही हुआ है। ज़ाहिर है ऐसे में उर्दू अकादमी की तरफ से उर्दू पर किया जाने वाला काम बंद है। उर्दू परामर्शदाता समिति का भी वही हाल है। उर्दू परामर्शदाता समिति का गठन नही किया गया है नतिजे के तौर पर परामर्शदाता समिति के दफ्तर में ताला लटका है।

 

उर्दू निदेशालय

 

(Second Official Language of Bihar) उर्दू निदेशालय काम कर रहा है। उर्दू निदेशालय के मातेहत सभी ज़िलों में उर्दू पर काम करने के लिए कर्मचारियों को नियुक्त किया गया है। उर्दू निदेशालय पर सरकार का हर साल करीब 70 करोड़ रुपया खर्च होता है। गौरतलब है कि उर्दू निदेशालय में करीब 1,500 कर्मचारियों को और नियुक्त किया जाना है। नये कर्मचारियों की नियुक्ति के बाद उर्दू निदेशालय पर सरकार का खर्च करीब 130 करोड़ रुपया हो जाएगा। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या निदेशालय उर्दू को ज़मीन पर उतारने की कोशिश कर रहा है।

जारी

 

 

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