Urdu Teacher Vacancy बिहार में

 

Urdu Teacher Vacancy बिहार में

 

Urdu Teacher Vacancy बिहार में

PATNA- क्या बिहार में Urdu Teacher Vacancy नाम की कोई चीज़ है। याद कीजिए 2009 का साल जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एलान किया था कि राज्य के सभी स्कूलों में उर्दू टीचरों की बहाली की जाएगी लेकिन क्या हुआ बहाली हुई। उसका जवाब आप को मालूम है। सुबे के आधे से ज्यादा स्कूलों में उर्दू टीचरों की जगहे बरसों से खाली है। मुख्यमंत्री कहते हैं कि वो वोट की सियासत नही करते हैं वो काम पर यकीन रखते है। उनकी पार्टी के लीडर उन्हें विकास पुरूष के नाम से पुकारते हैं। विकास पुरूष ने स्कूलों में उर्दू का विकास नही कराया, आखिर क्यों। आप इसका जिम्मेदार किसे मानेगें ज़ाहिर है सरकार को मानेंगे। लेकिन कुछ और भी लोग जिम्मेदार हैं। आज बात उनकी।

 

Urdu Teacher Vacancy

 

 

अपना पल्ला झाड़ने की रवायत

सरकार को हर मसले का जिम्मेदार मान कर अपना पल्ला झाड़ने की रवायत बहुत पुरानी है। ठीक वैसी ही जैसे समुंद्र में गोता लगाने वालों को साहिल पर खड़ा हो कर समुंद्र की गहराई के बारे में बताया जाता है। तो चलिए एक नये नज़रिए से देखते हैं कि क्या उर्दू और उर्दू टीचरों की सारी समस्याओं का जिम्मेदार सरकार ही है या कोई और भी है। 2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एलान किया कि तमाम स्कूलों में उर्दू के टीचरों को नियुक्त किया जाएगा। यानी बिहार में Urdu Teacher Vacancy की शुरुआत की उम्मीद बांधें उर्दू वाले खुश हो गये लेकिन बारह साल बितने के बाद भी स्कूल की दहलीज़ उर्दू शिक्षकों के इंतज़ार में अपना दिन काट रही है। तो सवाल है कि सरकार ने एलान किया लेकिन उर्दू भाषा पर मर मिटने का दावा करने वाले लोग कहां गये कि उन्होंने एक बार भी सरकार से पुछा नही की हुजूर आप के एलान का क्या हुआ।

 

Also Read – Government School In Bihar

 

नीतीश कुमार

 

नीतीश कुमार जब पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उर्दू अकादमी की मीटिंग उन्होंने सचिवालय के अपने दफ्तर में बुलाई थी। उर्दू वालों से उन्होंने वादा किया था कि हर साल उर्दू अकादमी की मीटिंग हुआ करेगी। फिर मुख्यमंत्री काम काज में मसरूफ हो गये और पलट कर अकादमी और उर्दू वालों की खबर नही ली। उस वक्त हर प्रोग्राम में वो उर्दू का कसीदा पढ़ने लगे। बार बार कहते थे कि उन्हें उर्दू सीखना है। उनकी पार्टी के उस वक्त के एमएलसी प्रो. असलम आज़ाद को उन्होंने कहा कि वो मुझे उर्दू पढ़ाएं। मुख्यमंत्री ने यहां तक कहा था कि हम चाहते हैं कि सब बच्चे उर्दू पढ़ें। फिर क्या हुआ कि मुख्यमंत्री ने उर्दू के जायज हक को भी देने की जहमत नही की।

 

Also Read – Up Assembly Election

 

लापरवाही

दरअसल मुख्यमंत्री को बहुत जल्द एहसास हो गया कि जिस जबान की तरक्की की बात वो कर रहे हैं उस ज़बान के बोलने वाले तो खुद उर्दू के मामले में लापरवाह हैं। पिछले एक दशक में उर्दू के मामले पर ना ही कोई सियासी लीडर, सामाजिक संस्थान, अकलियती तंज़ीम और उर्दू के विकास का दावा करने वाले लोग और नाही वो लोग जिनकी दाल रोटी उर्दू से चलती है ये सवाल करना ज़रुरी समझा कि साहब आप अपना वादा पूरा कीजिए और स्कूलों में उर्दू शिक्षकों को नियुक्त कीजिए। कहने के लिए बिहार में उर्दू दुसरी सरकारी ज़बान है और इस भाषा के बोलने वालों की दर्जनों संगठन हैं जो पानी के बुलबुले की तरह सरकार से नाराज़ होतें हैं। उर्दू के मसले पर बात करते हैं और खामूश हो जाते हैं। क्या कभी देखा की उर्दू के नाम पर नीतीश कुमार के दौरे हुकूमत में कोई तहरीक चली हो। उर्दू वाले आंदोलन करने की ग़लती नहीं करते हैं वो सिर्फ घर में बैठ कर खाने की मेज पर उर्दू की बात करते हैं। बस ये काफी है, वो अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेतें है बाकी सरकार पर छोड़ देते है कि गलती तो आखीरकार सरकार की है।

 

मुस्लिम संगठन

बिहार के बड़े मुस्लिम संगठनों में से एक इमारत-ए-शरिया बिहार ने उर्दू के मामले पर आवाज़ लगाने की कोशिश की है। इमारत के अमीर-ए-शरियत मौलाना वली रहमानी ने पूरे सुबे में उर्दू वालों को कहा कि अब तो खड़ा हो कर अपनी ज़बान की बात कीजिए। वली रहमानी साहब अब इस दुनिया में नही हैं लेकिन उन्होंने 14 फरवरी 2021 को पटना में उर्दू के नाम पर एक मीटिंग किया था। तमाम उर्दू की नामचीन हस्तियों ने उस प्रोग्राम में शिरकत किया। मौलाना वली रहमानी ने मीटिंग में कहा कि इस भाषा के मामले में संजीदा काम करना अब आपकी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि एक बार प्रोफेसर रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी ने हिंदू साहित्यकारों के एक प्रोग्राम में कहा था कि हम चाहते हैं कि हमारी नस्ल उर्दू सीखे ताकि उन्हे ड्राइंग रूम में बैठने और बोलने का सलीका आ जाए। ज़बाने तो सब प्यारी है उर्दू का कमाल ये है कि जहां से गुजरती है सलीका छोड़ जाती है। दुसरा वाकया उन्होंने बताया कि एक बार मशहूर स्वतंत्रता सेनानी पंडित सुंदरलाल ने पटना के अंजुमन इस्लामिया हॉल में कहा था कि वो एक बार किसी गांव से जा रहे थे, सड़क से कुछ दूरी पर एक प्राइमरी स्कूल में बच्चों के पढ़ने की आवाज़ आई, वो वहां उर्दू की खैरियत लेने पहुंच गये। स्कूल में पहुंचे तो बच्चे रट रहे थे पृथ्वी, पृथ्वी, पृथ्वी माने ज़मीन। दिल ने कहा देहात में भी उर्दू जिंदा है।

 

Also Read – Second Official Language उर्दू

 

टीईटी उर्दू

पिछले सात सालों से बारह हज़ार ग्रेस पास टीईटी उर्दू के उम्मीदवार इस उम्मीद पर हैं कि उनकी बहाली होगी। टीईटी के उम्मीदवारों ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री से लेकर तमाम उर्दू के चाहने वाले मंत्रियों और नेताओं के दरवाजे पर दस्तक दिया। किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। उर्दू की दुहाई देने वाले लोग अखबारों में उनके बारे में रिपोर्ट पढ़ते रहे लेकिन क्या मजाल की वो उनके साथ मुख्यमंत्री से एक सवाल पुछ लें कि साहब आप ही ने एलान किया था, स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति करने का। आप भूल गये हैं तो हम आप को याद दिलाने आ गये हैं। अफसोस है कि अब उर्दू पर बात करने वाली वो अज़ीम शख्सियतें कभी इस तरह के सवालों को वक्त के बादशाह के समाने लाने की ज़हमत गवारा नही करती है।

 

क्या सिर्फ सरकार ही लापरवाह है

सरकार लापरवाह है। इस पर सियासी पार्टियों के नेताओं का अलग-अलग तर्क है। एमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल इमान का कहना है कि सरकार को टीईटी उम्मीदवारों के मसले हल करना चाहिए। बहाली के इंतज़ार में उनकी उम्र खत्म हो रही है। सरकार इस मसले को हल करे और बताए कि उनकी बहाली होगी या नही वहीं सत्ता में बैठे हुए मुस्लिम लीडर कहते हैं कि नीतीश कुमार विकास पुरूष हैं वो सबके लिए काम कर रहे हैं। तो लापरवाह कौन है। ज़ाहिर है उर्दू के मामले में सरकार लापरवाह है। सरकार उर्दू को इंसाफ देने की जहमत नही करती है। लेकिन क्या उर्दू वाले, उर्दू के नामचीन लोग, उर्दू के नाम पर मोटी रकम कमाने वाले, उर्दू के नाम पर संगठन चलाने वाले, उर्दू के कारण ऊंचे मुकाम पर पहुंचने वाले, उर्दू के प्रोफेसर, साहित्यकार, कहानीकार, कलमकार, उर्दू की सियासत करने वाले, ये भी तो लापरवाह हैं। क्या कभी सड़क पर उर्दू की तख्ती लेकर सरकार के खिलाफ उन्हे उर्दू का सवाल करते, अपना विरोध दर्ज कराते देखा। अगर देखा होता तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि उर्दू सुंदर ज़़बान है सभी को पढ़ना चाहिए लेकिन वो इस बात को भूल गए। किसी उर्दू वालों ने उन्हें याद नही दिलाया, याद दिलाते तो बात बनती। ये तो साफ है कि उर्दू जहां से गुजरती है सलीका छोड़ जाती है।

 

Also Read – Maulana Wali Rahmani

 

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

[td_block_social_counter facebook="tagdiv" twitter="tagdivofficial" youtube="tagdiv" style="style8 td-social-boxed td-social-font-icons" tdc_css="eyJhbGwiOnsibWFyZ2luLWJvdHRvbSI6IjM4IiwiZGlzcGxheSI6IiJ9LCJwb3J0cmFpdCI6eyJtYXJnaW4tYm90dG9tIjoiMzAiLCJkaXNwbGF5IjoiIn0sInBvcnRyYWl0X21heF93aWR0aCI6MTAxOCwicG9ydHJhaXRfbWluX3dpZHRoIjo3Njh9" custom_title="Stay Connected" block_template_id="td_block_template_8" f_header_font_family="712" f_header_font_transform="uppercase" f_header_font_weight="500" f_header_font_size="17" border_color="#dd3333"]
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

You cannot copy content of this page