Akhtarul Iman AIMIM

 

Akhtarul Iman AIMIM

 

 

बिहार की सियासी मैदान पर एम आई एम की फील्डिंग

PATNA- बिहार की सियासत में मुस्लिम वोट बैंक की अपनी एक अलग अहमियत रही है। नतीजे के तौर पर राज्य की सभी सियासी पार्टियों की सियासत अल्पसंख्यक समाज की इर्द-गिर्द घूमती है। बात अगर मुस्लिम बहुल इलाकों की करें तो चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हर पार्टी मुसलमानों को अपनी पार्टी की तरफ करने की हर मुमकिन कोशिश में जुटी नज़र आती है। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में एम आई एम की मौजूदगी ने मुस्लिम वोटों पर सियासत करने वाली पर्टियों को उलझन में डाल दिया है उधर एम आई एम राज्य में Akhtarul Iman AIMIM के नेतृत्व में अपना दायरा बढ़ाने की पूरी कोशिश में जुटी है।

 

Akhtarul Iman AIMIM
Akhtarul Iman, MLA and Bihar State president, All India Majlis-e-Ittehadul Muslimeen.

 

 

नीतीश कुमार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुसलमानों के बीच अपनी एक अलग छवि बनाने की कामयाब कोशिश की है। मुस्लिम समाज का एक तबका नीतीश कुमार को पसंद करता है और उनके काम की तारीफ करता है। मुख्यमंत्री ने हमेशा इस बात को बार-बार दोहराया है कि वो वोट की सियासत नहीं करते हैं बल्कि उनकी सरकार सभी समाज के विकास के लिए काम कर रही है। नीतीश कुमार के इस बात पर जब अल्पसंख्यक समाज गौर करता है तो कमियां साफ तौर से नज़र आने लगती है। अल्पसंख्यकों का कहना है कि सरकार के मातहत काम करने वाले अल्पसंख्यक संस्थाओं तक का सरकार ने गठन नहीं किया है वहीं उर्दू स्कूलों के साथ-साथ उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति का मसला ठंडे बस्ते में पड़ा है। अकलियतों की तरक्की के नाम पर शुरु की गई सरकार की योजनाएं ज़मीन पर लागु नहीं हो पाती है। समाज के जानकारों के मुताबिक नीतीश कुमार ने काम ज़रुर किया है लेकिन अब वो अल्पसंख्यकों के मामले में बहुत संजीदा नही दिखाई दे रहे हैं।

 

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लालु प्रसाद

बिहार की मुस्लिम आबादी कभी लालु प्रसाद पर जान छिड़का करती थी। लगातार 15 सालों तक एम और वाई (मुसलमान और यादव) समीकरण के बदौलत सत्ता में रहने वाली पार्टी में ही सुबे के तमाम बड़े दिग्गज मुस्लिम नेता मौजुद हैं। जानकार बताते हैं कि लालु प्रसाद और राबड़ी देवी की सत्ता के शुरुआती दिनों में अकलियतों के सिलसिले में काम ज़रुर हुआ लेकिन बाद के दिनों में पार्टी अपने समीकरण के बनावट को भूल गई। नतीजे के तौर पर सूबे की सत्ता बदल गई। अब पार्टी का नेतृत्व तेजस्वी प्रसाद यादव के हाथ में है लेकिन तेजस्वी प्रसाद, लालु प्रसाद की तरह अकलियतों के मामले में बोलना तक ज़रुरी नहीं समझते हैं। ऐसे में मुसलमानों का एक वर्ग आज भी लालु प्रसाद के नाम पर आरजेडी की हिमायत कर रहा है लेकिन एक वर्ग नीतीश कुमार के नाम पर जेडीयू से करीब हुआ है।

 

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एम आई एम

पिछले विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एम आई एम कि बिहार में इंट्री के बाद से ही पार्टी के कार्यकर्ता मुस्लिम वोटों को अपनी झोली में करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। आमतौर पर चुनाव से पहले सियासी पार्टियां हरकत में आती है और लोगों के बीच जा कर अपने वोट बैंक को दुरूस्त करने की कोशिश करती है लेकिन एम आई एम लगातार बिहार में अल्पसंख्यक वर्ग और दलित वर्ग को ये बताने की कोशिशों में जुटा है कि एम आई एम सत्ता की सियासत नहीं करती है बल्कि शोषितों, पिछड़ों, गरीबों और समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के अधिकारों की बात करती है। बिहार के सीमांचल से पार्टी ने अपनी तैयारी की है और पूरे सुबे में ये पैगाम देने की कोशिश की जा रही है कि सब को देखा एक बार एम आई एम पर भी मुसलमान भरोसा करे।

 

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सीमांचल

एम आई एम को Akhtarul Iman AIMIM के शक्ल में एक बेहतर सियासी रहनुमा मिला है जो अपनी सलाहियत और अपनी बातों से लोगों को पार्टी से करीब लाने का हुनर जानते हैं। खासतौर से सीमांचल में अख्तरूल इमान एक बड़ा चेहरा हैं। कभी सीमांचल की सियासत मोहम्मद तसलीम उद्दीन, मौलाना असरारूल हक कासमी जैसे स्थानिय नेताओं पर निर्भर थी लेकिन उनके निधन के बाद अख्तरूल इमान स्थानिय नेता के शक्ल में सीमांचल का चेहरा बन रहे हैं।

 

अख्तरूल इमान

अख्तरूल इमान का कहना है कि बिहार के 243 विधानसभा की सीटों में 60 सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक समाज उम्मीदवारों के किस्मत का फैसला करता है लेकिन विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व हमेशा आठ से नौ प्रतिशत रहा है। ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है, ज़ाहिर है तमाम सियासी पार्टियों को अपनी वोट की फिक्र रही है। मुसलमानों के प्रतिनिधित्व कभी भी उनके एजेंडे में नहीं रहा है। तो ये कैसा इंसाफ है। दूसरी तरफ सुबे में मुसलमानों की 51 फीसदी आबादी खेतिहर मजदूर है तो सरकारी नौकरियों में मुसलमान 7.6 प्रतिशत हैं। Akhtarul Iman AIMIM का कहना है कि हाशिए पर खड़े समाज के उत्थान के लिए उनकी पार्टी जद्दोजहद कर रही है और एम आई एम तमाम ऐसे लोगों की आवाज़ है जो हाशिए पर हैं और जिनके खिलाफ नाइंसाफी हो रही है।

 

मुसलमान उलझन में

मुस्लिम समाज के बीच सियासी हिस्सेदारी का सवाल हमेशा कायम रहा है। वो सेक्युलर पार्टियों और सेक्युलर नेताओं की हिमायत करते आए हैं। उनका कहना है कि वक्त बदलने के साथ-साथ अकलियती समाज का नज़रिया भी बदला है। वो मुख्यधारे से जुड़ रहे हैं। शिक्षा से लेकर रोज़गार में वो अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सत्ता में वो नही हैं। सत्ता में उनकी भागीदारी शुन्य होने के कारण वो अपने जायज़ सवाल को भी सियासी गलियारों में नही रख पाते हैं। नतीजे के तौर पर उनकी समस्याएं बनी रह जाती है। अल्पसंख्यक वर्ग का पढ़ा-लिखा और युवा समाज इस बदलाव को दूसरे नज़रिए से देखता है। उनके मुताबिक हर पार्टी को चुनाव लड़ने का हक है और मुस्लिम समाज ने सभी पार्टियों को वोट दिया है। आने वाले दिनों में भी वो जिस पार्टी को बेहतर समझेंगे उसको वोट करेंगे। एम आई एम को भी वो एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं। यही कारण है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष Akhtarul Iman AIMIM ने बिहार के उन इलाकों में भी पार्टी को मज़बुत बनाने की कोशिश शुरु की है जहां मुस्लिम समाज और दलित समाज की अच्छी आबादी है।

 

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