Asaduddin Owaisi
Asaduddin Owaisi: हमेशा संजीदा सवालों के साथ खड़ा होते हैं असदुद्दीन ओवैसी
समाज के कमजोर तबके की बात करना गैरतमंद लीडर की निशानी होती है। और वो लीडर अगर लोकतंत्र के सबसे बड़े सदन का हिस्सा हो तो और भी जरूरी हो जाता है कि इनसाफ के लिए अपनी आवाज बुलंद करें और सरकार को बताए की क्या सही है। चाहे वो कोई भी नुमाइंदा हों उन्हें आम लोगों के लिए जनहित में ये काम करना जरूरी होता है। ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी की बात और उनके संघर्ष में दिलचस्प किस्म की समानता देखी जाती है। सियासत में कदम रखते ही वो जान गए थे की उन्हें क्या करना है। एक बार जीते तो फिर नहीं रुके। हालात अच्छे रहे हो या बुरे सब का उन्होंने मुकाबला किया। |
आजादी के बाद से ही भारत का मुसलमान सियासी लीडरशीप के कशमकश से जुझता रहा है। सियासी मंज़रनामें पर कई सियासी लीडर आए और चले गए। कई दिग्गज मुस्लिम लीडरों ने अपनी पहचान बनाई और समाज के विकास के लिए अद्भुत काम किया। पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर उन्होंने मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन और पसमांदगी को हल करने की कोशिशें भी की। उनमें कई नाम है लेकिन मौजूदा वक्त में मुस्लिम लीडरशीप का मामला बिल्कुल हाशिए पर है। पूरे मुल्क में महज एक नाम ऐसा है जो मुसलमानों के मसले पर ना सिर्फ खुल कर बात करता है बल्कि लोकसभा में अपनी आवाज से दूसरे लोगों को भी मोतासिर करता रहा है। उनकी आवाज सुनी जाती है। गोदी मीडिया के जमाने में भी वो मीडिया के टीआरपी का पहला नाम है। अपनी तारकीक बातों से सब को लाजवाब करने वाले उस लीडर का नाम बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी है। Asaduddin Owaisi भारत के एक ऐसे मुस्लिम लीडर हैं जिन की बात पूरा सदन गौर से सुनता है। वो कभी सतही बात नहीं करते हैं हमेशा संजीदा सवालों के साथ बहस का हिस्सा बनते हैं।
क्या वो सिर्फ मुसलमानों के नेता हैं?
आमतौर पर उन्हें लोग सिर्फ मुसलमानों के नेता कहते हैं लेकिन हकीकत ये है कि वो दलित, शोषित, पिछड़े और कमजोर वर्ग की आवाज बन कर हमेशा सामने खड़े होते रहे हैं। जानकारों के मुताबिक ये कहना कि वो सिर्फ मुसलमानों के नेता है, गलत है। समाज के कमजोर तबके की बात करना गैरतमंद लीडर की निशानी होती है। और वो लीडर अगर लोकतंत्र के सबसे बड़े सदन का हिस्सा हो तो और भी जरूरी हो जाता है कि इनसाफ के लिए अपनी आवाज बुलंद करें और सरकार को बताए की क्या सही है। चाहे वो कोई भी नुमाइंदा हों उन्हें आम लोगों के लिए जनहित में ये काम करना जरूरी होता है। ऐसे में Asaduddin Owaisi की बात और उनके संघर्ष में दिलचस्प किस्म की समानता देखी जाती है।
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ओवैसी का परिवार
हैदराबाद में 13 मई 1969 को असदुद्दीन ओवैसी का जन्म हुआ था। सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी और नजमुनेस्सा बेगम के घर पैदा हुए ओवैसी का परिवार एक राजनीतिक परिवार था। असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए। असदुद्दीन ओवैसी पेशे से एक बैरिस्टर हैं। उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी तेलंगाना विधानसभा के सदस्य हैं। असदुद्दीन ओवैसी की शादी फरहीन ओवैसी से हुई है। उनके छह बच्चे हैं। एक बेटा और पांच बेटियां।
एक बार जीते तो फिर नहीं रुके
असदुद्दीन ओवैसी हैदराबाद लोकसभा से पहली बार 2004 में चुने गए थे। तब से ही वो हैदराबाद लोकसभा क्षेत्र की नुमाइंदगी कर रहे हैं। असदुद्दीन ओवैसी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ओवैसी पूरे मुल्क में अपनी पार्टी को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरे राज्यों में भी उनकी पार्टी से कई नेता विधानसभा तक पहुंचने में सफल हुए हैं। शुरु में असदुद्दीन ओवैसी को कोई जानता नहीं था लेकिन अब असदुद्दीन ओवैसी की बात सदन के साथ-साथ पूरा देश सुनता है। वो अकसर अकलियतों के मसले पर खुल कर बात करते हुए देखे जाते हैं। वो दलितों के सवाल पर भी सरकार का ध्यान खिंचने की कोशिश करते है। संविधान में दिए गए अधिकारों के मुताबिक वो आम लोगों के लिए हक चाहते हैं और उसके लिए जद्दोजहद करते है।
बीजेपी की ‘B’ टीम का लगता रहा है आरोप
अकलियतों के बारे में सबसे ज्यादा बात करने वाले इस लीडर पर भी बीजेपी की ‘बी’ टीम होने का आरोप लगता रहा है। अलग-अलग सियासी पार्टियों के मुस्लिम लीडर कोई मौका गंवाए बगैर Asaduddin Owaisi को बीजेपी से जोड़ते हैं। मुस्लिम समाज का एक हिस्सा उनकी हिमायत करता है और उनकी बातों से काफी प्रभावित है लेकिन एक हिस्सा ऐसा भी है जिन की नजर में असदुद्दीन ओवैसी बीजेपी के लिए काम करते हैं। देश की दलित आबादी भी उनसे काफी प्रभावित है। इन सब आरोप प्रत्यारोप से दूर असदुद्दीन ओवैसी अपने काम में मगन रहते हैं। लोगों के बुनियादी सवालों को उठाना और उसके हल के सिलसिले में कोशिश करना गोया उनका मकसद है।
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