Imarat e Shariah

 

Imarat e Shariah और  Ameer e Shariat 

 

Imarat e Shariah के नए अमीर-ए-शरियत का बड़ा एलान। किसी एक मसलक का नहीं है इमारत, सभी मुसलमानों का है इमारत-ए-शरिया

 

PATNA- अमीर-ए-शरियत के चुनाव के बाद कई महीनों से चल रहा विवाद अब खत्म हो गया है। इमारत-ए-शरिया के आठवीं अमीर-ए-शरियत की हैसियत से मौलाना सैयद अहमद वली फैसल रहमानी ने इमारत की बागडोर संभाल ली है अब उनके हाथों में Imarat e Shariah का मुस्तकबिल है। फैसल रहमानी आईटी के आदमी हैं और नए ज़माने के तकाजों को पूरी तरह से जानते हैं। अमेरिका में पढ़ाई और मुलाज़मत की है। फैसल रहमानी इमारत-ए-शरिया के पहले अमीर है जो पूरी तरह से आधुनिकता से वाकिफ हैं। अमेरिका में रहते हुए उन्होंने बड़ी-बड़ी कंपनियों में बड़े ओहदों पर काम किया है। जैसे ओरेकल, पैसिफिक गैस एंड इलेक्ट्रिक, अडोब, ब्रिटिश पेट्रोलियम और डिज्नी जैसी कंपनियों में बड़ी जिम्मेदारी अदा कर चुके हैं। साथ ही वो कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के ओहदे पर भी काम किए हैं। इसके अलावा फैसल रहमानी एक अमेरिकी संस्थान के डायरेक्टर ऑफ स्ट्रेटजिक प्रोजेक्ट भी रह चुके है। फैसल रहमानी के पिता और मारूफ इस्लामिक स्कॉलर हज़रत मौलाना मुहम्मद वली रहमानी के निधन के बाद पिता की ख्वाहिश के मुताबिक वो वतन वापस लौटे और खानकाह मुंगेर के सज्जादा नशीन के तौर पर खानकाह की जिम्मेदारी संभाली।

 

Imarat e Shariah
Maulana Faisal Rahmani, Ameer e Shariat, Imarat-e-Shariah Bihar.

 

 

 

देश के बड़े मुस्लिम संगठनों में से एक है इमारत-ए-शरिया

 

मौलाना वली रहमानी इमारत-ए-शरिया के अमीर-ए-शरियत थे उनके निधन के बाद अमीर-ए-शरियत के इंतखाब का मामला सामने था। इमारत-ए-शरिया देश के बड़े मुस्लिम संगठनों में से एक है और अमीर-ए-शरियत का ओहदा सबसे बड़ा ओहदा होता है। पिछले कुछ महीनों में अमीर-ए-शरियत के चुनाव को लेकर काफी बहस और विवाद हुआ। मौलाना फैसल रहमानी भी अमीर-ए-शरियत के उम्मीदवार थे। आखिरकार तमाम विवादों के बावजूद फैसल रहमानी को अमीर-ए-शरियत के तौर पर चुन लिया गया। अब वो इमारत-ए-शरिया के अमीर-ए-शरियत हैं और लोगों की काफी उम्मीदें उनसे वाबिस्ता है।

 

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Imarat e Shariah की तरक्की को लेकर काफी संजीदा हैं फैसल रहमानी

 

जानकारों का कहना है कि दिन और दुनिया की बेहतरीन समझ रखने वाले फैसल रहमानी इमारत-ए-शरिया की तरक्की में चार चांद लगाने की कोशिश करेंगे। इमारत-ए-शरिया की तारीख 100 साल की है। इमारत ने काफी बुरा वक्त भी देखा है और अपनी कारकिरदगी और आलिम-ए-दिन की मेहनत से इमारत अपने एक सौ साल की मुद्दत में तारीखी कारनामा भी अंजाम दिया है। अब इमारत-ए-शरिया उस मुकाम पर है जहां लोगों की बड़ी तादाद हर मामले में इमारत की तरफ देखती है और उसके फैसलों का एहतराम करती है। नए अमीर-ए-शरियत के मुताबिक अगले 10 सालों में क्या-क्या काम किया जाएगा, इमारत की तरफ से उसका एक खाका तैयार किया जा रहा है। अमीर-ए-शरियत का कहना है कि उसके जरिए इमारत-ए-शरिया की तरक्की के साथ-साथ लोगों के मसले को हल करना का रास्ता हमवार किया जाएगा।

 

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इमारत-ए-शरिया के काम का अंदाज बदलेगा

 

मौलाना फैसल रहमानी के अमीर बनने के बाद Imarat e Shariah के काम का तरीका बदलेगा बल्कि यूं कहे की इमारत के लिए यहां से एक नए जमाने की शुरुआत होगी। मौलाना फैसल रहमानी के मुताबिक आगामी दस सालों में इमारत-ए-शरिया बुनियादी तौर पर तालीम, रोजगार, मदरसा, दारूल कज़ा की स्थापना के सिलसिले में पूरी संजीदगी के साथ काम करेगा।

 

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आइंदा दस सालों की योजना

 

  • तालीम

इमारत-ए-शरिया के मातहत सैकड़ों मदरसे चलते हैं। मौलाना फैसल रहमानी उन मदरसों में तालीम के मैयार को बेहतर करने की कोशिश करेंगे। फैसल रहमानी के मुताबिक साबिक (पूर्व) अमीर-ए-शरियत मौलाना वली रहमानी का ख्वाब था कि हर ज़िले में एक रिहायशी स्कूल कायम किया जाए। इमारत-ए-शरिया आइंदा दस सालों में इस बात की कोशिश करेगी कि सीबीएसई निजाम के तहत बिहार, झारखंड और ओड़िशा में स्कूलों की स्थापना को यकीनी बनाया जाए।

 

  • दारूल कज़ा

इमारत-ए-शरिया के मातहत दारूल कज़ा का एक बेहतरीन निजाम कायम है। दारूल कज़ा में निकाह, तलाक, विरासत के साथ-साथ मुसलमानों के विभिन्न मसले का हल किया जाता है। लोगों का एक तबका दारूल कज़ा पर भरोसा करता है और अदालतों में चक्कर काटने के बजाए दारूल कज़ा में अपने झगड़ों का निपटारा करता है। दारूल कज़ा एक ऐसा सिस्टम है जहां कम वक्त में शरियत की रौशनी में काजी लोगों के मसले का हल कराता है। दारूल कज़ा में लोगों के घरेलू झगड़े को खत्म कर उनकी मुश्किलों को हल किया जाता है। मौलाना फैसल रहमानी के मुताबिक आइंदा 10 सालों में वो उन तमाम जगहों पर दारूल कज़ा की स्थापना करेंगे जहां मुसलमानों की आबादी है। फैसल रहमानी ने ये भी कहा की इमारत का काम सिर्फ बिहार में नहीं होगा बल्कि एक समान बिहार, झारखंड, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल में भी किया जाएगा। उन्होंने कहा की जहां-जहां इमारत का असर है उन इलाकों में दारूल कज़ा की स्थापना की जाएगी।

 

  • स्वास्थ्य

नए अमीर-ए-शरियत का कहना है कि सेहत और अस्पताल के क्षेत्र में भी इमारत की तरफ से गंभीर कदम उठाया जाएगा। आने वाले 10 सालों में राज्य के विभिन्न जिलों में अस्पताल कायम करने की भी योजना बनाई जाएगी।

 

सरकारी स्कीम

 

मौलाना फैसल रहमानी के मुताबिक अल्पसंख्यकों के विकास के नाम पर सरकार की दर्जनों योजनाएं चलाई जा रही है। Imarat e Shariah सरकार की उन योजनाओं को जमीन पर लागू कराने में अपना तावन देने को तैयार है। फैसल रहमानी का कहना है कि हाल में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान से इस मामले में उनकी बातचीत हुई है। अगर सरकार चाहे तो अल्पसंख्यकों की वो योजनाएं जिससे अकलियतों को सीधे तौर पर फायदा हो सकता है उससे लागू कराने के लिए Imarat e Shariah की मदद ले सकती है। इमारत हर मुमकिन कोशिश करने को तैयार है। उन्होंने कहा की स्वरोजगार के लिए चलाई जा रही लोन की स्कीम काफी बेहतर है और बाकायदा कैंप लगा कर इस काम को ज़मीन पर उतारा जा सकता है। इस सिलसिले में Imarat e Shariah अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के साथ मिल कर काम करने को तैयार है।

 

बगैर किसी भेद भाव के Imarat e Shariah करती है काम

 

मुसलमानों के अलग-अलग मसले पर इमारत-ए-शरिया जागरूकता अभियान चलाती रही है। लोगों में भाईचारा कायम करने के साथ-साथ उनकी मुश्किलों को हल करने में इमारत ने हमेशा मदद की है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदा में बगैर किसी भेद भाव के Imarat e Shariah काम करती है। इमारत के तालीमी एदारों और अस्पतालों में समाज के सभी वर्ग के लोग पहुंचते हैं, इमारत की तरफ से तमाम लोगों को एक समान मदद पहुंचाने की पूरी कोशिश की जाती है। यहां तक की दारूल कजा में मुसलमानों के अलावा दूसरे समाज के लोगों के झगड़ों को भी सुलझाया जाता है। ऐसे में आने वाले वक्त में इमारत-ए-शरिया ये कोशिश करेगी की भाईचारा मजबूत हो और इमारत मुसलमानों के साथ-साथ तमाम मजबूर, बेबस और जरूरतमंदों की मदद करें।

 

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