Maulana Wali Rahmani

 

Maulana Wali Rahmani

 

Maulana Wali Rahmani और Muslim Leadership

 

PATNA- 1947 के बाद हिन्दुस्तान में मुसलमानों के सामने सबसे बड़ा Challenge नेतृत्व यानी क़यादत की कमी से जुड़ा रहा है। 1947 के पहले मुसलमानों के पास सियासी और मज़हबी दोनों नेतृत्व मौजुद था लेकिन मुल्क तक़सीम होने के बाद सियासी लीडरशीप का खात्मा हो गया। देश में बिखरे और सहमें हुए मुसलमानों की रहनुमाई करने के लिए यूं तो कई दिग्गज सियासी नेता मौजुद थे लेकिन दरअसल मुसलमानों को सहारा दिया उस वक्त की मज़हबी लीडरशीप ने। वक्त गुजरने के साथ साथ ये बात साफ हो गई कि देश में मुसलमानों का नेतृत्व अगर किसी के हांथ में है उसका नाम उलेमा हैं या फिर उलेमा की बनाई हुई तंज़ीम है। आजादी के बाद के हिन्दुस्तान में जो तब्दीलियां हुई और जिस Challenges का सामना मुसलमानों को था उसका मुकाबला मज़हबी व समाजिक संस्थाओं से जुड़े उलेमा ने ही किया और आज भी किसी ना किसी सूरत में मुस्लिम समाज का नेतृत्व उनके ही हांथों में है। ऐसे लोगों की एक बड़ी फेहरिस्त मौजुद है जिस में एक नाम मौलाना मोहम्मद वली रहमानी का भी है। Maulana Wali Rahmani और मुस्लिम लीडरशीप एक साथ सफर करते करते उस मंज़ील तक पहुंचा जहां तारीकी में रौशनी टिमटिमाती नज़र आने लगी।

 

Maulana Wali Rahmani
Maulana Mohammad Wali Rahmani

 

 

Maulana Mohammad Wali Rahmani

वो 5 जुन का दिन था और 1943 का साल जब मौलाना वली रहमानी एक अज़ीम इल्मी घराने में पैदा हुए। दादा मोहम्मद अली मुंगेरी एक बड़े Islamic Scholar थे और पिता सैयद मिन्नतुल्लाह रहमानी खुद एक बड़े आलीमे दीन थे। साथ ही लखनऊ के दारुल उलूम नदवा के संस्थापकों में से एक थे। खानकाह मुंगेर के सज्जादानशीन थे। ऐसे घराने में पैदा होने वाले वली रहमानी बहुत जल्द समझने लगे कि उनकी जिंदगी का मकसद क्या है। कमज़ोर तबके की मदद और मुसलमानों के विकास को लेकर मौलाना वली रहमानी का सफर जारी रहा। 1991 में मौलाना वली रहमानी खानकाह मुंगेर के सज्जादानशीन बने। वो हमेशा मुस्लिम समाज की तरक्की को लेकर कुछ नया करना चाहते थे। जस्टिस राजेंद्र सच्चर कमिटी और जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग ने देश के मुसलमानों की हालत को लोगों के सामने खोल कर रख दिया था। मौलाना वली रहमानी ने सियासी सफर भी किया था और 1974 से 1996 तक वो बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे थे। वो अच्छी तरह जानते थे कि सियासी भंवर में किस तरह से मुसलमानों को उलझा कर रखा गया है और जिंदगी के हर मैदान में पिछड़ चुके इस समाज को कैसे खड़ा किया जाए।

 

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Rahmani 30

मौलाना वली रहमानी ने आम उलेमा से अलग हट कर अपना रास्ता बनाया। Maulana Wali Rahmani और मुस्लिम लीडरशीप की जब बात होती है तो Rahmani 30 का ज़िक्र जरुर आता है। वो एक ख्वाब था जिसकी ताबीर Rahmani 30 से की गई। 2008 में उस वक्त के (बिहार के) डीजीपी अभयानंद के साथ मिल कर उन्होनें पटना में रहमानी थर्टी की स्थापना की। मुस्लिम छात्रों के लिए शुरु की गई ये मुहीम जबरदस्त कामयाब हुई। आई आई टी के रिजल्ट के फेहरिस्त में मुस्लिम छात्रों का नाम तलाश करना पड़ता था लेकिन रहमानी 30 आर्थिक एतबार से कमज़ोर मेधावी छात्रों को उस मोकाम तक पहुंचाने का ज़रिया बनी। ये मौलाना रहमानी का एक बड़ा कारनामा था जिसे देख कर पुरे देश में समाज के जिम्मेदारों का नज़रिया बदलने लगा।

 

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इमारत-ए-शरिया

मौलाना वली रहमानी को इमारत-ए-शरिया बिहार, झारखंड और उड़ीसा का अमीर-ए-शरियात बनाया गया। इमारत-ए-शरिया के अमीर-ए-शरियत बनने के बाद उन्होने एलान किया कि वो सीबीएससी मीडियम के स्कुल बिहार और झारखंड में कायम करेगें। उस पर काम शुरु हुआ। उन्होंने तकनीकी तालीम को बढ़ावा देने की कोशिश की। वो समझते थे कि बगैर तालीम और वो भी आधुनिक तालीम के अल्पसंख्यक समाज की हालत नही बदलेगी। इमारत के अमीर-ए-शरियत होने के नाते वो पूरे बिहार, झारखंड और उड़ीसा के मुसलमानों को एक जगह जमा करना चाहते थे। तैय हुआ दीन बचाओं देश बचाओं नाम से बिहार की राजधानी पटना में एक रैली की जाए।

 

दीन बचाओं देश बचाओं रैली

दीन बचाओं देश बचाओं रैली के लिए 15 अप्रैल 2018 का दिन तैय किया गया। उस की तैयारी जोरो शोर से शुरु हुई। उस वक्त मौलाना वली रहमानी अमीर-ए-शरियत होने का साथ साथ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जेनरल सेक्रेटरी भी थे। पटना के गांधी मैदान में दीन बचाओं देश बचाओं रैली को कामयाब बनाने के लिए जबरदस्त तैयारी की गई। बिहार की कोई ऐसी सियासी पार्टी का मुस्लिम लिडर नही था जो उस रैली को सफल बनाने का प्रयास नही कर रहा हो। हर संगठन, हर तंज़ीम और हर मुस्लिम नेता की ज़बान पर एक महीने तक एक ही नाम था दीन बचाओं देश बचाओं रैली। बिहार सरकार ने भी रैली की पुर जोर हिमायत की। गांधी मैदान में रैली का खर्च सरकार ने खुद उठाया। उर्दू के पत्रकार, उर्दू के साहित्यकार, बुद्दिजीवी, नेता, समाजिक कार्यकर्ता, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, अधिकारी सब के सब उस रैली में शरीक रहे। बिहार के कोने कोने से मुसलमानों का काफिला गांधी मैदान का रूख करने लगा।

 

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15 अप्रैल 2018

15 अप्रैल का दिन- सुबह दस बजते बजते गांधी मैदान में हज़ारों की तादाद जमा हो चुकी थी और दोपहर होते होते लाखों लोग गांधी मैदान में आयोजित मौलाना वली रहमानी की दीन बचाओं देश बचाओं रैली का हिस्सा बन चुके थे। धुप की सख्त तपिश के बावजुद लाखों लोगों का काफिला मौलाना वली रहमानी का इंतज़ार कर रहा था। स्टेज पर किसी को यहां तक की सियासी लिडर को भी चढ़ने की इजाजत नही थी। स्टेज के पिछे सियासी नेताओं के बैठने का जगह बनाया गया था। मौलाना वली रहमानी लोगों से खिताब करने पहुंचे, लोग दिल थाम कर बैठे थे। उनहें उम्मीद थी कि कोई बड़ा एलान यहां से होगा या कोई जबरदस्त रणनीति बनाई जाएगी लेकिन मौलाना वली रहमानी एक काग़ज का नोट पढ़ कर लोगों को सुनाते रहे। उनका खिताब खत्म हुआ तो लोगों को मालुम नही चल सका कि ये रैली बुलाई किस लिए गई थी। मानों गांधी मैदान कि उस रैली के लिए की गई एक महीने की मुश्कत एक दम से हवा हो गई हो। उस रैली को बड़े मकसद के तहत इस्तेमाल किया जा सकता था जो नही किया गया। लोगों को जो पैगाम पहुंचना चाहिए था वो नही पहुंच सका। शाम होते होते ये ख़बर आम हो गई कि खालिद अनवर को एमएलसी बनाने के लिए ये रैली बुलाई गई थी लेकन ऐसा नही था, ये बात ग़लत थी। खालिद अनवर के एमएलसी बनाने का फैसला सरकार ने ऐसे वक्त में किया जिस से लोगों को गलतफहमी हो गई। इस बात पर मौलानी वली रहमानी की खुब आलोचना हुई लेकिन वली रहमानी खालिद अनवर को कभी खालिद अनवर नही कहते थे बल्कि हमेशा डॉ खालिद अनवर कहा करते थे। उन्होंने खालिद अनवर को एमएलसी बनाये जाने का स्वागत किया।

 

बेबाक रहनुमां

मुस्लिम लीडरशीप की जब भी लोग बात करते हैं तो नवंबर 2012 में पटना के मदरसा इस्लामिया शमसुल होदा में Maulana Wali Rahmani की तकरीर लोगों को याद आने लगती है। मदरसा शमसुल होदा में एक प्रोग्राम का आयोजन किया गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, शिक्षा मंत्री पीके शाही, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री शाहिद अली खान कार्यकर्म में मौजुद थे। आचानक वली रहमानी भी वहां पहुंच गये जबकी दावत नामा में उनका नाम नही था। उस प्रोग्राम में पूरे बिहार से मुस्लिम बुद्दिजीवियों को बुलाया गया था। करीब दस हज़ार लोग प्रोग्राम में मौजुद थे। वली रहमानी को स्टेज पर बोलने के लिए बुलाया गया। मुख्यमंत्री की मौजुदगी में वली रहमानी ने बेबाक अंदाज़ में अपनी बात ऐसी कही कि उसका जवाब ना ही मुख्यमंत्री दे सके और ना ही शिक्षा मंत्री। इस में कोई शक नही की वली रहमानी एक बेबाक, निडर, अपने उसूलों पर चलने वाले, अपनी बात से पीछे नही हटने वाले, एक खामोश तहरीक, अपने आप में एक अंजुमन थे बल्कि एक बेहतरीन कायद थे।

 

वली रहमानी से मुलाकात

मौलाना वली रहमानी ने कई दंगों को अपनी आंखों से देखा था, उसमें रिलीफ का काम किया था, उन्होंने अखबार निकाला और सियासत भी की। लाखों लोगों से उनकी मुलाकातें रही। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी से अच्छे रिश्ते रहे। कॉग्रेस पार्टी से करीब थे। कपिल सिब्बल से गहरा रिश्ता था। तलाक़ कानुन की जम कर मुखालफत की। नई तालीमी पॉलेसी के खिलाफ थे। कभी किसी से डरे नही अपनी बात पर हमेशा कायम रहे। जितने उनके चाहने वाले हैं उतने ही आलोचना करने वाले। मुस्तकबिल का मोअरिख जब वली रहमानी के काम पर रिसर्च करेगा तो और नई बाते मंज़रे आम पर आएगी लेकिन ये बिल्कुल साफ है कि वो एक बेहतरीन कायद थे और मुसलमानों का उन्होंने नेतृत्व किया। एक अज़ीम रहनुमां और इल्म का आफताब 03 अप्रैल 2021 को गुरुब हो गया। पटना के एक निजी अस्पताल में उनकी मौत हुई। ये ख़बर सुनते ही अस्पताल में सियासी, समाजिक, मज़हबी लोगों का तांता लग गया। अगले दिन खानकाह मुंगेर में लाखों लोगों की मौजुदगी में सुपुर्द ए खाक हुए।

 

 

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