Urdu Bangla Special Tet

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Urdu Bangla Special Tet के समर्थन में उठने लगी आवाज

Urdu Bangla Special Tet

पिछले सात सालों से इंसाफ के इंतज़ार में टीईटी अभ्यर्थी दर-दर भटकने पर मजबूर हैं लेकिन सरकार ने उनका मसला हल नहीं किया है। ये मामला विधानसभा में भी उठ चुका है लेकिन सरकार ने उसे हमेशा टालने की ही कोशिश की है। अब उर्दू टीईटी अभ्यर्थियों के मामले पर पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यक संगठनों ने भी आवाज उठानी शुरु कर दी है।

बिहार में उर्दू को दूसरी सरकारी जबान का दर्जा हासिल है लेकिन अमली तौर पर उर्दू के साथ कितना इंसाफ हो रहा है उसकी एक मिसाल Urdu Bangla Special Tet के अभ्यर्थी हैं। पिछले सात सालों से सरकार से इंसाफ की उम्मीद में टीईटी अभ्यर्थी दर-दर भटकने पर मजबूर हैं। उनके मसले को हल करने के सिलसिले में सरकार की तरफ से अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। उर्दू बंगला टीईटी संघ अपने अधिकार को लेकर लगातार संघर्ष कर रहा है। संघ का कहना है कि एक ही परीक्षा का कई बार रिजल्ट निकाला गया। पहले जो पास थे वो बाद के रिजल्ट में फेल हो गए। ऐसे 12000 अभ्यर्थी है जो आज दाने-दाने को मोहताज हो गये हैं। टीईटी में पास होने के बाद पहले जो नौकरी कर रहे थे उसे उन्होंने छोड़ दिया लेकिन सरकार ने बाद में रिजल्ट निकाल कर उनको फेल कर दिया अब वो बेरोजगार हैं। नौकरी मिली नहीं, शिक्षक नियुक्ति की उम्मीद में वो अपने जीवन का आखिरी संघर्ष करने पर मजबूर हैं। संघ की लगातार मुहिम का असर है कि लोग अब उनके साथ खड़ा होने लगे हैं।

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टीईटी अभ्यर्थियों के मामले पर सरकार से सवाल

ऐसा नहीं है कि सियासी पार्टियों की तरफ से उनके मसले पर कोई आवाज नहीं उठाई गई है। ये मामला विधानसभा में भी उठ चुका है लेकिन सरकार ने इस मसले को हमेशा टालने की ही कोशिश की है। अब उनके मामले पर पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यक संगठनों ने भी आवाज उठानी शुरु कर दी है। उनका कहना है कि ये बात समझ से परे है कि सरकार इस मामले को हल करने में इतनी देरी क्यों कर रही है। इमारत-ए-शरिया बिहार ने हाल में हुई एक मीटिंग में कहा कि Urdu Bangla Special Tet अभ्यर्थियों का मसला काफी बड़ा है। उनके साथ इनसाफ नहीं हो रहा है। इस मामले पर वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात करने की बात कर रहे हैं। उधर उर्दू के अलग-अलग संगठनों की तरफ से भी उर्दू टीईटी अभ्यर्थियों के मसले को हल करने की अपील की जा रही है।

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टीईटी के मसले को लटकाना गैर मुनासिब

उर्दू से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार 2013 में Urdu Bangla Special Tet का परीक्षा लेती है। और एक ही परीक्षा का तीन-तीन बार रिजल्ट निकाला जाता है। बिहार स्कूल एक्जामिनेशन बोर्ड की गलती की सजा टीईटी का इम्तहान देने वाले अभ्यर्थियों को कैसे दी जा सकती है। अल्पसंख्यक संगठनों के मुताबिक 2014 को निकाले गये संशोधित रिजल्ट में 26500 अभ्यर्थी सफल होते हैं। कामयाब होने वाले उम्मीदवारों को रिजल्ट कार्ड दिया जाता है। उन्हें मार्कशीट मिलता है। शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अभ्यार्थियों का नाम भी मेरिट लिस्ट में आ जाता है। अब फिर से 2015 में तकनीकी कमी का बहाना बना कर एक और रिजल्ट जारी किया जाता है और उस रिजल्ट में पास होने वाले 12000 उम्मीदवारों को फेल कर दिया जाता है। ये कहां का इनसाफ है। अभ्यर्थियों को 2014 से लगातार सियासी भंवर में सरकार ने उलझा कर रखा है। सरकार या तो उनके साथ इंसाफ करें या फिर बताए की उनका रिजल्ट अब जारी नहीं किया जाएगा। एमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान का कहना है कि हमने सरकार से कई बार कहा की उनकी नियुक्ति की जाए या सरकार सामने आकर बताए की ये मसला क्यों नही हल हो रहा है। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि जब राज्य के स्कूलों में उर्दू के शिक्षकों की भारी कमी है फिर ऐसे अभ्यर्थियों को मौका नहीं दिया जाना अफसोसनाक है। सरकार इस मामले पर खामोश है जो गैर मुनासिब है।

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लाठी डंडे खाने पर भी नहीं मिला इंसाफ

उर्दू बंगला टीईटी संघ के प्रदेश अध्यक्ष मुफ्ती हसन रजा अमजदी का कहना है कि हमने इस मामले पर लगातार संघर्ष किया है लेकिन अब तक नतीजा ला हासिल रहा। अमजदी के मुताबिक पटना के सड़कों पर Urdu Bangla Special Tet अभ्यर्थी पुलिस की लाठी खाते रहे और सरकार निंद से सोती रही। हमें बार-बार भरोसा दिलाया गया कि उनका मसला हल हो जाएगा लेकिन आज तक हमारी मुश्किलों को हल करने की कोशिश नहीं की गई। टीईटी के अभ्यर्थियों के पास अभी कोई नौकरी नहीं है। हमारी उम्र निकलती जा रही है। हम भुखमरी के कागार पर खड़े हैं। नीतीश कुमार विकास पुरुष के नाम से जाने जाते है। क्या उनका यहीं इनसाफ है कि 12000 लोग जो पास हो चुके थे उन्हें फेल कर उनको दो वक्त की रोटी का मोहताज बनाया जाए। अमजदी का कहना है कि हम आज भी सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं। उर्दू बंगला टीईटी संघ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील करता है कि वो उनकी मुश्किलों को हल करने के लिए आगे आये।

कई संगठनों ने इस मसले पर सरकार को घेरा

उर्दू बंगला टीईटी संघ की हिमायत में अब कई तंज़िमें खड़ी हो गई है। अल्पसंख्यकों की तरफ से आयोजित होने वाले करीब सभी कार्यक्रमों में टीईटी उर्दू को एक मुद्दा बनाया जा रहा है। लोग इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि सात सालों में उनका मसला क्यों हल नहीं किया गया। शिक्षा मंत्री से खुद जेडीयू के मुस्लिम नेताओं ने कई बार मुलाकात की है। बंद कमरे में उन्हें समझाया और उनसे इस मसले को हल करने की अपील की लेकिन शिक्षा विभाग ने भी इस मामले का कोई नोटिस नहीं लिया। जानकारों का कहना है कि एक तरफ सरकार कहती है कि राज्य के सभी स्कूलों में एक-एक उर्दू के शिक्षकों की नियुक्त की जाएगी और दूसरी तरफ Urdu Bangla Special Tet अभ्यर्थियों के साथ इंसाफ नहीं किया जा रहा है। उनके मुताबिक क्या ऐसे में सभी सरकारी स्कूलों में उर्दू के शिक्षकों की नियुक्ति हो पाएगी।

मुख्यमंत्री से जल्द फैसला करने की अपील

बुद्धिजीवियों के मुताबिक Urdu Bangla Special Tet के उम्मीदवारों के साथ सरकार का ये सलूक जाहिर है उन्हें भारी पड़ सकता है। जब तमाम सियासी पार्टियों की नज़र वोट बैंक पर रहती है ऐसे में उर्दू वालों के साथ इस तरह की नाइंसाफी कहीं ना कहीं सरकार के खिलाफ जाएगी। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस मामले पर गौर करने की अपील की है साथ-साथ उनका ये भी कहना है कि बेरोजगारी के दल-दल में फंसे युवाओं को बाहर निकालने के लिए सरकार को ठोस रणनीति बनानी चाहिए। इस मामले में जब खुद सरकार रिजल्ट निकालती है और उसी परीक्षा का फिर से रिजल्ट निकाल कर पास उम्मीदवारों को फेल कर दिया जाता है। गौर करने वाली बात ये भी है कि वो उम्मीदवार सात साल से इंसाफ के इंतजार में है लेकिन सरकार ने अब तक उनकी आवाज नहीं सुनी है। सात साल का समय काफी होता है। मुख्यमंत्री गंभीर व्यक्ति हैं उन्हें Urdu Bangla Special Tet के अभ्यर्थियों की समस्याओं को फौरन हल करना चाहिए। सरकार के पास तमाम मशीनरी होती है वो चाहे तो कोई काम मुश्किल नहीं है फिर 12000 बेरोजगार नौजवानों को बगैर किसी जुर्म के सजा देना गैर मुनासिब है। इस मामले में मौजूदा सरकार को अविलंब पहल करते हुए इसका हल निकालना चाहिए।

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